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IAS की पत्नी,माँ,भतीजी से 2 साल तक रेप, करवाना पड़ा था अबॉर्शन,कौन था वो राजद नेता ?

October 16, 2020
RJD

बिहार में चुनाव बा, कोई ना जाने जानेला 2020 में केकर सरकार बा......जैसा की आप सबको पता है, बिहार में अभी विधानसभा चुनाव का दौर चल रहा है. इसी बीच हम आपको बिहार में लालू यादव के जंगल राज के दौर का एक ऐसा किस्सा सुनाते हैं, जिससे आपकी रूह ही नहीं आपकी आत्मा भी कांप जाएगी. बात है उन दिनों के जंगलराज की जब जनता की तो छोड़िए आईएएस अधिकारी तक सुरक्षित नहीं थे. ऐसे ही एक अधिकारी की पत्नी थी चंपा विश्वास, उस दौर के जंगल राज में उस अधिकारी की पत्नी चंपा विश्वास के साथ एक ऐसी रेप की घटना सामने आई जिसने बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया था. उस वक़्त के बिहार की बात की जाए तो बिहार में गुंडागर्दी, मर्डर, रेप, फिरौती जैसी घटनाएं जंगलराज में आम हो चली थी और शायद यही कारण था कि बिहार जो कभी पूरे विश्व को ज्ञान का पाठ पढ़ाया करता था वह सिर्फ और सिर्फ जंगलराज का पाठ पढ़ा रहा था.


आईएएस की पत्नी ही नहीं बल्कि उसके परिवार वालों के साथ भी 2 वर्षों तक बलात्कार किए गए :

लालू के जंगल राज का दौर ऐसा था मानो हत्याएं अपहरण और फिरौती की घटनाएं इतनी आम हो चली थी कि लोगों ने इन खबरों को खबर ही मानना छोड़ दिया था. उस वक्त के सत्ताधारी पार्टी के नेता ही गुंडे थे और उनके पाले हुए चमचे खुले तौर पर हत्या, बलात्कार और किडनैपिंग जैसी वारदात को अंजाम देते थे और सत्ताधारी नेताओं का हाथ उन पर होने के कारण उन पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती थी. आपको बता दें कि आईएएस अधिकारी बीबी विश्वास ने जब जंगल राज के शहंशाह लालू यादव के करीबी मृत्युंजय यादव पर 2 साल में न सिर्फ उनकी पत्नी बल्कि उनके और कई सगे संबंधियों का भी रेप करने का आरोप लगाया तो मानो पूरे बिहार और देश में हड़कंप सा मच गया.

अगर इस मामले की शिकायत पुलिस में की जाती तो शायद यह शिकायत या तो फाइलों के इतिहास में कहीं दब सी जाति या फिर उल्टा पुलिस पीड़ितों के खिलाफ ही कार्रवाई करती, क्योंकि इस घटना को अंजाम दिया था उस वक्त के जंगल राज के सुप्रीमो लालू यादव के एक करीबी ने. फिर भी यह मामला लाइमलाइट में तब आया जब पीड़िता ने बिहार के तत्कालीन राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी को पत्र लिखकर न्याय की मांग की.

चंपा विश्वास के साथ इतनी बार बलात्कार किया गया कि उन्हें अपना एबॉर्शन तक करवाना पड़ा था :

आपको बता दें कि 1982 बैच के आईएएस अधिकारी बीवी विश्वास तब बिहार के लेबर विभाग में सोशल सिक्योरिटी के डायरेक्टर हुआ करते थे. बीवी विश्वास ने लालू यादव के करीबी मृत्युंजय पर आरोप लगाया था कि उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर न सिर्फ उनकी पत्नी बल्कि उनकी मां, 2 मेड और भतीजी तक के साथ बलात्कार किया था. साथ ही साथ बीवी विश्वास ने यह भी बताया था कि उस दरिंदे नेता ने इसके लिए धमकी, लालच, जोर-जबर्दस्ती और हिंसा तक का भी सहारा लिया था. तब चंपा विश्वास 30 साल की थी

इस घटना में चंपा विश्वास को एक बार एबॉर्शन भी करवाना पड़ा था. अंत में स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि चंपा विश्वास को अपना Sterlization ही करवाना पड़ा. आपको बता दें कि कई बार बलात्कार किए जाने के कारण बार-बार गर्भवती होने से बचने के लिए चंपा विश्वास ने यह कदम उठाया था तब उन्होंने यह भी अंदेशा जताया था कि उनकी भतीजी कल्याणी और 2 मेड सर्वेन्ट्स,जो गायब हो गई थी उनकी बलात्कार के बाद हत्या भी की गई होगी. इतनी दरिंदगी भारी घटना को लेकर जब राज्यपाल को पत्र लिखा गया तब राज्यपाल ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए गृह मंत्रालय को इस मामले को देखने की सिफारिश की थी.साथ ही उन्होंने बिहार के तत्कालीन डीजीपी नियाज अहमद को भी इसकी जाँच करने के आदेश दिए थे.

इस घटना के बाद बीबी विश्वास अपने परिवार के साथ दिल्ली शिफ़्ट हो गए थे :

8 अगस्त 1998 को भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था और कहा था कि बिहार में अब प्रभावशाली और सम्मानित परिवारों की महिलाएं भी सुरक्षित नहीं है और असहाय हैं, क्योंकि राजद के गुंडों को लगता है कि वह कुछ भी कर कर बच निकल सकते हैं. आपको बता दें कि बीबी विश्वास इतने बड़े अधिकारी होने के बावजूद भी अपने परिवार को नहीं बचा पाए, अब आप इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि उस दौड़ में बिहार में किस तरह का जंगलराज होगा.

इस घटना के बाद बीवी विश्वास अपने पूरे परिवार के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गए थे. वही चंपा विश्वास ने अपने पति के जीवन को खतरा बताते हुए कहा था कि, "उनके पति को इस घटना की जानकारी काफी बाद में मिली". साथ ही साथ आपको ये भी बता दे कि मृत्युंजय की मां हेमलता यादव विधायक रह चुकी थी और वह बिहार सोशल वेलफेयर एडवाइजरी बोर्ड की अध्यक्ष थी.

इस खबर पर राजद नेताओं ने बेशर्मी भरा बयान देकर मृत्युंजय यादव का बचाव भी किया था :

मृत्युंजय यादव ने इन खबरों को गलत बताते हुए कहा था कि ये उनके और उनकी मां के खिलाफ एक सोची समझी साजिश है. साथ ही साथ मृत्युंजय यादव ने  बीबी विश्वास पर अपनी ड्यूटी ठीक से ना करने और दफ्तर से गायब रहने तक के आरोप भी लगाए था. वहीं अगर उस वक़्त के राजद की व्हिप मोहम्मद नमतुल्लाह की बात की जाए तो उन्होंने शर्मनाक बयान देते हुए कहा था कि वह हेमलता के परिवार को व्यक्तिगत रूप से अच्छी तरह जानते हैं और वह लड़का ऐसा नहीं कर सकता.

मोहम्मद नमतुल्लाह का यह बयान ठीक वैसा ही था जैसा अखिलेश यादव की सरकार में रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने एक बार बलात्कारियों को लेकर बयान देते हुए कहा था कि, "लड़के हैं गलती तो हो ही जाती है". आपको बता दें कि इस घटना से 3 साल पहले भी मृत्युंजय यादव पर एक राजनेता की बेटी का यौन शोषण करने के लिए गिरफ्तार किया गया था और उस वक्त भी लालू यादव का करीबी होने के कारण मृत्युंजय यादव कुछ नहीं बिगाड़ पाई थी.

चम्पा विश्वाश से मृत्युंजय यादव ने शादी की जबरदस्ती की और ना करने पर उनका बलात्कार किया गया :

वक्त के बीते पन्नों में झाक कर देखे तो उस वक्त बीबी विश्वास का पूरा परिवार पटना बेली रोड स्थित सरकारी क्वार्टर में रहा करता था. उस वक्त चंपा विश्वाश ने अपनी दर्ज शिकायतों में बताया था कि, उनके बगल के क्वार्टर में रहने वाले अधिकारी और उनकी पत्नी उन्हें बुलाकर अपने फ्लैट पर ले गए थे. जहां मृत्युंजय यादव और उसकी मां हेमलता पहले से ही मौजूद थे, जिसके बाद उन लोगों ने चंपा विश्वास को मृत्युंजय यादव के साथ जबरदस्ती अकेले कमरे में बंद कर दिया था. उसके बाद मृत्युंजय यादव ने चंपा विश्वास का बलात्कार किया. आरोप में यह भी बताया गया कि हेमलता ने चंपा विश्वास को धमकाया कि इस बारे में अगर चंपा विश्वास ने किसी को बताया तो उनके परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी जाएगी और साथ ही साथ बलात्कार कि आपत्तिजनक तस्वीर भी सार्वजनिक कर दी जाएगी.

चंपा विश्वास ने अपने बयान में यह भी बताया था कि, एक दिन अचानक से फिर से मृत्युंजय यादव अपनी मां हेमलता यादव और कुछ लोगों के साथ कैमरा लेकर आ धमका और चंपा विश्वास के साथ शादी की जिद की. हेमलता यादव ने चंपा विश्वास के साथ जबरदस्ती करते हुए कहां की मृत्युंजय स्मार्ट है और बड़े परिवार से है इसलिए चंपा विश्वास को उससे शादी कर लेनी चाहिए. साथ ही साथ हेमलता यादव ने चंपा विश्वास के पति को बूढ़ा बताते हुए कहा कि शादी के बाद चंपा विश्वास को कहीं का अध्यक्ष बना दिया जाएगा. जब चम्पा विश्वास ने इसका विरोध किया तो उनके साथ मृत्युंजय यादव ने फिर से बलात्कार किया.

चंपा विश्वास की मां और भतीजी के साथ भी मृत्युंजय ने बलात्कार की कोशिश की थी :

शिकायत में आगे बताया गया कि दिसंबर 1995 में एक बार फिर से मृत्युंजय यादव, चंपा विश्वास के घर पहुंचा और उसने चंपा विश्वास की मां को किचन में देखा. जिसके बाद मृत्युंजय ने चंपा विश्वास की मां के साथ जबरदस्ती की और उन्हें जबरन किस करने की कोशिश की. इन घटनाओं को देखकर चंपा विश्वास की घबराई मां ने उन्हें परिवार सहित  फ्लैट खाली करने को कहा. कुछ इसी तरह मृत्युंजय ने चंपा विश्वास की भतीजी कल्याणी के साथ भी बलात्कार किया. मृत्युंजय घर की मेड से कह कर बीबी विश्वास को ड्रग्स दिया करता था ताकि वह बेहोश हो जाए और मृत्युंजय अपनी मनमानी कर सके.

नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन को भेजे गए अपने पत्र में चंपा विश्वास ने बताया था कि बिहार के एक बहुत बड़े बाहुबली नेता जंगलराज के मसीहा ने उनके साथ बलात्कार किया. साथ ही साथ चंपा विश्वास ने यह आरोप भी लगाया था कि पुलिस ने भी उनके बयान को हुबहू कोर्ट में पेश नहीं किया, जैसा उन्होंने बयान पुलिस को दिया था. चंपा विश्वास का कहना था कि बयान को बदलकर कोर्ट में पेश किया गया. आपको बता दें कि बीवी विश्वास का परिवार इस घटना के बाद दिल्ली शिफ्ट हो गया था लेकिन उनके मन में ऐसा डर बैठा हुआ था कि उनको अपना ठिकाना तकरीबन 20 बार बदलना पड़ा.

10 साल पहले आरोपित को कोर्ट ने झूठे गवाहों को बुनियाद बनाकर बरी कर दिया :

हालाकी 10 साल पहले यानी 2010 में बिहार के पटना हाईकोर्ट ने हेमलता यादव और मृत्युंजय यादव को चंपा विश्वास के रेप कांड से जुड़े मामले में बड़ी करते हुए, ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. आपको बता दें कि आरोपित का कहना था कि उसका राजद और भाजपा की लड़ाई में इस्तेमाल किया गया है और बकरा बनाया गया है. साथ ही साथ उसने यह भी कहा कि सुशील मोदी ने जानबूझकर इस मुद्दे को बड़ा बनाया जिससे उसकी जिंदगी बर्बाद हो गई वरना वह दिल्ली के हिंदू कॉलेज में पढ़ता था और सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था. 

अब आप खुद तय करिए की लालू यादव की सरकार का जंगलराज कैसा रहा होगा, इतनी शर्मनाक घटना के बाद भी आरोपित बड़ी हो जाता है और पीड़िता को न्याय नहीं मिलता है. आज फिर से 2020 में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और एक बार फिर से राजद ने अपने अधिकतम क्षेत्रों में गुंडे, मवाली और बाहुबली को ही उम्मीदवार बनाया है. अगर आप चाहते हैं कि वो जंगलराज फिर से दोबारा बिहार में ना आए तो आप किसी और पार्टी को वोट कर दें लेकिन राजद को भूलकर भी वोट ना करें क्योंकि आपका एक वोट महत्व रखता है. अपने वोट का इस्तेमाल सही उम्मीदवार चुनने के लिए करें ना कि किसी क्रिमिनल को.

लड़कियों की जगह बिस्तर पर देखने वाले हिंदुओं... कुछ इस तरह से संबोधित किया आरफा खानम शेरवानी ने

October 16, 2020

आप सबको जैसा कि पता है कुछ दिन पहले तनिष्क ज्वेलरी ने तनिष्क एकत्वम पर एक वीडियो जारी किया था, जिसको लेकर काफी विवाद हुआ और इसको बॉयकॉट करने की ट्विटर पर मुहिम चल पड़ी थी. जिसके बाद तनिष्क ने एक बयान जारी करते हुए वीडियो को हटाने की बात कही और लोगों की भावनाओं को आहत करने के लिए माफी भी मांगा था. इस विवाद पर लिबरल गैंग और एनडीटीवी द्वारा सांप्रदायिक फेक न्यूज़ फैलाई गई और हिंदुत्व पर तरह-तरह के निशाने साधे गए. अब इस मुहिम में The Wire की तथाकथित जर्नलिस्ट आरफा खानम शेरवानी ने मोर्चा संभाला है और काफी घटिया शब्दों का प्रयोग करते हुए उन्होंने सत्य सनातन धर्म पर उंगली उठाई है.


आरफा खानम शेरवानी का ये घटिया मार्ग उनकी कट्टर मानसिकता को दर्शाता है :

तनिष्क के वीडियो पर जारी विवाद आरफा खानम शेरवानी ने ऐसा घटिया मार्ग चुना जिसको देखकर किसी भी धर्म का व्यक्ति आगबबूला हो सकता है. विरोध करना अलग बात होती है लेकिन ऐसे घृणित शब्दों का चयन ऐसे घटिया पत्रकारों से ही किया जा सकता है आपको बता दें कि इस विवाद पर आरफा खानम शेरवानी ने एक ट्वीट करते हुए लिखा कि :-  

“लड़की को माँ की कोख में मार देने वाले, दहेज के नाम पर ज़िंदा जला देने वाले, लड़की की ‘सही’ जगह रसोई व बिस्तर के परे न देख पाने वाले कैसे बर्दाश्त करेंगे, एक मुस्लिम घर में हिंदू बहू को प्यार-सम्मान मिले और उसकी पहचान भी सुरक्षित रह पाए. ये लड़कियों के, उनकी आज़ादी के दुश्मन हैं.”  अब आप खुद आरफा खानम शेरवानी की घटिया मानसिकता के बारे ने विचार कीजिए कि इन्होंने अपने अंदर कितनी नफरत पाल रखी है किसी एक धर्म के लिए. अगर इस्लाम के विरूद्ध किसी ने ऐसे शब्दों का चयन की होता तो शायद अभी तक उसके खिलाफ सैकड़ों फतवे निकल गए होते. आरफा खानम की कोशिश इस ट्वीट में हिन्दुओं के प्रति अपनी भड़ास निकालने की थी, यह बात छुपी हुई नहीं है. लेकिन उनके इस ट्वीट पर कुछ लोगों ने उन्हें याद दिलाया कि आरफा का यह ट्वीट तो खुद उन्हीं के मजहब यानी, इस्लाम पर हमला है.

आरफा खानम शेरवानी को उनके है अंदाज में ट्विटर यूजर्स ने आईयना दिखया :

नाम के एक ट्विटर यूजर ने आरफा खानम के ट्वीट के जवाब में इस्लाम की पवित्र पुस्तक ‘कुरान’ की ही एक पंक्ति का स्क्रीनशॉट ट्वीट किया जिसमें इस्लाम के  को महिलाओं और उनकी सेक्सुएल्टी पर अधिकार के निर्देश दिए गए हैं –

PureWoke नाम के एक टि्वटर यूजरने आरफा खानम के ट्वीट पर जवाब देते हुए इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान की एक पंक्ति का स्क्रीनशॉट लेकर ट्वीट किया, जिसमें इस्लाम की सच्चाई और आरफा खानम को आईना दिखाने के लिए कुछ पंक्तियां लिखी हुई थी. उस स्क्रीनशॉट में इस्लाम के अनुयायियों को महिलाओं और उनकी सेक्सुअलिटी पर अधिकार के निर्देश बताए गए थे :-

 


अपने बेशर्मी भरे ट्वीट के बाद आरफा खानम शेरवानी सफाई देती नजर आ रही हैं :

आपको बता दें कि आरफा खानम द्वारा किया गया यह ट्वीट पूरी तरह से उनके खिलाफ चला गया जहां लोगों ने उनको याद दिलाया कि उनका यह ट्वीट पूरी तरह से किसी धर्म के खिलाफ है जिसमें वह सिर्फ और सिर्फ जहर उगल रही है इस ट्वीट के बाद आरफा खानम शेरवानी लगातार सफाई देती नजर आ रही है और कह रही है कि उनका ऐसा विचार नहीं था इस ट्वीट पर सफाई देते हुए आरफा खानम ने लिखा कि :-

पितृसत्ता को जब चोट लगती है तो वो धार्मिक बँटवारे का सहारा लेती है। ऊपर वाली ट्वीट किसी भी तरह हिंदू धर्म पर टिप्पणी नहीं है। बल्कि उस सोच पर है जो एक महिला को उसकी मर्ज़ी का जीवन जीने, जीवनसाथी चुनने के अधिकार से वंचित करती है, और महिला के शरीर व सेक्सुएलिटी पर क़ब्ज़ा चाहती है।”



 

बिहार चुनाव में इस बार स्वर्ण उम्मीदवारों का दबदबा, राजद ने भी छोड़ा मुस्लिम-यादव कांसेप्ट

October 16, 2020

आपको बता दें कि बिहार में सभी पार्टियों के उम्मीदवारों ने अपने अपने पर्चे भर दिए हैं और इस बीच इस बार की राजनीति में ऐसी अनुभूति होती है जैसे मानो तीन दशक बाद बिहार की राजनीति में स्वर्ण राजनीति लौटती दिख रही है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि इस बार के बिहार चुनाव में टिकट बंटवारे में करीब करीब सभी दलों ने सवर्णों को तवज्जो दी है. जैसा कि हम पहले देखते रहे हैं कि राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड हमेशा से दलित और पिछड़ों की राजनीति करती आई है, किंतु इस बार सवर्णों का इन पार्टियों ने भी खासा ख्याल रखा है. वहीं अगर हम भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो अपने काफी उम्मीदवारों में बीजेपी ने भी सवर्णों को ही तवज्जो दी है.


सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात तो यह है की दलित और पिछड़ों की राजनीति करने वाले रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा भी इस बार की बिहार राजनीति में सवर्णों को टिकट देने में कोई कमी नहीं की है. आपको बता दें कि जेडीयू में सोशल इंजीनियरिंग के तहत अपने जनाधार वाली जातियों के अलावा महिलाओं के साथ-साथ सवर्णों को भी उम्मीदवार बनाया है.

बीजेपी ने 60% से ज्यादा स्वर्ण उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं :

अगर हम इस बार के बिहार चुनाव में टिकट वितरण की बात करें तो भाजपा ने अपने उतारे गए प्रत्याशियों में से 60 फ़ीसदी स्वर्ण समाज से अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. वहीं अगर कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस का भी आंकड़ा इसी के आसपास भटकता नजर आता है. लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि जनता दल यूनाइटेड ने इस बार पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले सवर्णों को ज्यादा मौका दिया है. वहीं राजद ने भी दलित और पिछड़ों की राजनीति छोड़ते हुए अपनी रणनीति में बदलाव किया है और इस बार 10 फ़ीसदी से ज्यादा स्वर्ण को टिकट दिया है. आपको बता दें कि राष्ट्रीय जनता दल ने स्वर्ण वोटरों को लुभाने के लिए अपने ही पार्टी के कद्दावर नेताओं के रिश्तेदारों को मैदान में उतारा है.

वहीं अगर स्वर्गीय राम विलास पासवान की पार्टी लोजपा की बात की जाए जो कि हमेशा से दलित राजनीति करती रही है उसने 35 फ़ीसदी से ज्यादा स्वर्ण को टिकट दिया है.

हिंदुत्व के एजेंडे के कारण सभी पार्टियां स्वर्ण वोटरों को साधने में लगी है :

अगर आपको मालूम हो तो 2013 लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व के एजेंडे को वाह आगे बढ़ाते हुए हर विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति तय की और इस रणनीति में भाजपा को अच्छे नतीजे भी मिले. इसी एजेंडे को देखते हुए कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने भी हिंदुत्व के एजेंडे पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर कर दिया है. शायद यही वजह है कि जो राजद पहले के बिहार विधानसभा चुनाव में माई समीकरण वाले कांसेप्ट पर चुनाव लड़ती थी, इसबार वो समीकरण  विधानसभा चुनाव में नहीं दिख रहा. आपको बता दें कि राजद पहले के विधानसभा चुनाव में माई कॉन्सेप्ट के आधार पर टिकट वितरण करती थी, माई कांसेप्ट यानी मुस्लिम यादव समीकरण के आधार पर प्रत्याशियों को टिकट दिए जाते थे और इन्हीं वोटरों को हमेशा से राजद लुभाने की कोशिश करती थी.

सबसे बड़ी बात यह रही कि इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पहले चरण में मात्र एक मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारा है और चौंकाने वाली बात यह है कि इसबार मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या पिछली बार की के विधानसभा चुनाव से काफी कम है.

क्या कहता है इतिहास का समीकरण बिहार की राजनीति में स्वर्ण वोटरों को लेकर :

अगर इतिहास के पन्नों में झांक कर देखे तो 1989 - 1990 के बाद बिहार में स्वर्ण राजनीति का घोर विरोध हुआ. आपको बता दें कि 1990 के दशक में डॉ जगन्नाथ मिश्र चुनाव हारे और लालू प्रसाद यादव की सत्ता में इंट्री हुई. जिसके बाद बिहार की राजनीति ने ऐसा करवट लिया की जनता दल यूनाइटेड ने खुले मंचों से सवर्णों को कोसना शुरू कर दिया कि वह हमेशा से ओबीसी और दलितों का शोषण करते रहे है. उस वक्त के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने माई कॉन्सेप्ट को मजबूती दी और साथ ही साथ ओबीसी दलित और एससी एसटी वोटरों को जातिवाद की राजनीति करके खूब लुभाया. लालू प्रसाद यादव ने उस दौर में बिहार की राजनीति में जातिवाद का ऐसा जहर घोला की हर तरफ जातिवाद कि लड़ाई शुरू हो गई और बिहार में गुंडाराज का ऐसा माहौल बना की जातियों के नाम पर हर तरफ खून खराबे, किडनैपिंग और फिरौती वसूली जैसे कार्य चरम पर पहुंच गए.

1992 में ब्राह्मणों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा और भाजपाई हो गए.इसी समय दलित राजनीति को रामविलास पासवान ने हवा दी, ओबीसी राजनीति पर लालू और नीतीश कुमार बंटे. 1994 में समता पार्टी बनी और नीतीश की समता पार्टी ने भी सवर्ण विरोधी राजनीति को हवा दी.

स्वर्ण वोटरों का एक बड़ा तबका बीजेपी और जेडीयू गठबंधन का समर्थक है :

1995 आते-आते भारतीय जनता पार्टी ने स्वर्ण राजनीति को मजबूती देने की कोशिश की जिसमें काफी तेजी भी देखने को मिली जब राम मंदिर विवाद शुरू हुआ. उस वक्त बिहार की राजनीति में राजपूत और भूमिहार नेता खुलकर सामने आने लगे, फिर भी बिहार से जातिवाद का जहर खत्म नहीं हुआ. 2003 में जनता दल यूनाइटेड के गठन के साथ नीतीश कुमार ने अपने पुराने रुख को बदला और बीजेपी के साथ मिलकर स्वर्ण वोटरों पर निशाना साधना शुरू किया, जिसमें 2005 के बाद जेडीयू और बीजेपी के गठबंधन ने स्वर्ण वोटरों को लगभग अपने पाले में बना लिया. आज फिर से एक बार 2020 विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियों को स्वर्ण मतदाताओं की चिंता सताने लगी है कि आखिर वह किस के पाले में अपना वोट देंगे.

अगर देखा जाए तो बीते कुछ महीनों में सुशांत सिंह राजपूत हत्या की हत्या ने भारत में खूब सुर्खियां बटोरी और इसकी एक बड़ी झांकी बिहार विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल रही है. माना तो ऐसा भी जा रहा है कि सुशांत सिंह राजपूत के कारण इस बार स्वर्ण वोटरों को राजनीतिक पार्टियां लुभाने की कोशिश कर रही हैं.


आखिर क्यूं चिराग पासवान जदयू के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे हैं, कहीं प्रशांत किशोर तो कारण नहीं

October 12, 2020

बिहार की राजनीति इसको समझना और इसको भेदना उतना ही मुश्किल है जितना महाभारत में अभिमन्यु द्वारा चक्रव्यू को तोड़ना. अभी के दौड़ में जहां सभी पार्टियां चुनावी तैयारियों में जुंटी हुई है, वहीं यह अटकलें तेज हो गई हैं कि, प्रशांत किशोर कहां है ?.. और इस चुनाव में इनकी क्या भूमिका रहेगी ?.. आपको बता दें कि अटकलों के हिसाब से चिराग पासवान प्रशांत किशोर के कहने पर ही जनता दल यूनाइटेड के विरुद्ध चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. जहां एक तरफ इस फैसले से चिराग पासवान अपने जदयू से अपमानजनक निष्कासन का बदला ले सकेगी तो वहीं भविष्य की रणनीति से बीजेपी को फायदा भी पहुंचाएगी.

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आप सबको याद हो तो 2013 में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड जीत दिलवाने में प्रशांत किशोर का एक बड़ा योगदान रहा था, वहीं अगर बिहार के 2015 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो उस चुनाव में भी प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार और आरजेडी के महागठबंधन को शानदार जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. किंतु 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की मौजूदगी उस कदर दर्ज नहीं हो पा रही है जैसे पहले के चुनावों में होती रही है. माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर 2020 बिहार विधानसभा  के चुनाव में पर्दे के पीछे से गेम चेंजर हो सकते हैं. खबर तो यह भी आ रही है कि पिछले 2 वर्षों से चिराग पासवान प्रशांत किशोर के संपर्क में है. आपको बता दें कि चिराग पासवान और प्रशांत किशोर साल 2018 में 11 नवंबर को रामविलास पासवान के पटना आवास पर मिले भी थे और माना जा रहा है कि इस मुलाकात के बाद से दोनों लगातार संपर्क में है.


भगवान सिंह कुशवाहा का जदयू से अलग होने और एलजेपी के साथ होने के पीछे क्या कारण है :

आपको बता दें कि हाल ही में जनता दल यूनाइटेड के नेता और प्रशांत किशोर के करीबी भगवान श्री कुशवाहा ने जनता दल यूनाइटेड का दामन छोड़ एलजेपी का दामन थामा है और इसके पीछे वजह प्रशांत किशोर को बताया जा रहा है. आपको बता दें कि 2019 की शुरुआत में जब प्रशांत किशोर जनता दल यूनाइटेड के उपाध्यक्ष हुआ करते थे तभी भगवान सिंह कुशवाहा को उनके काफी समर्थकों के साथ प्रशांत किशोर ने ही जनता दल यूनाइटेड ज्वाइन करवाई थी और उनको यह वायदा किया गया था कि, उनको काराकाट लोकसभा सीट से टिकट दी जाएगी.

किंतु टिकट बंटवारे के वक्त जेडीयू महासचिव आरसीपी सिंह के सामने प्रशांत किशोर की चल नहीं पाई और भगवान सिंह कुशवाहा को टिकट नहीं मिल पाया. जिसके बाद से कुशवाहा नाराज चल रहे थे और प्रशांत किशोर के पार्टी छोड़ने के बाद कुशवाहा पार्टी में पूरी तरह से अलग-थलग हो गए थे. ऐसे में कुशवाहा का जनता दल यूनाइटेड छोर एलजेपी का दामन थामना प्रशांत किशोर और चिराग पासवान के सांठगांठ की ओर इशारा करता है. आपको बता दें कि भगवान सिंह कुशवाहा को जगदीशपुर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है.

प्रशांत किशोर को क्यों जनता दल यूनाइटेड से बाहर का रास्ता दिखाया गया था :

आप सबको याद हो तो सितंबर 2018 में प्रशांत किशोर ने सक्रिय राजनीति में अपना पांव पसारते हुए जनता दल यूनाइटेड का दामन थामा था. जिसके बाद लोगों को हैरानी भी हुई थी और हैरानी होना लाजमी भी था, क्योंकि प्रशांत किशोर इससे पहले अलग-अलग पार्टियों के लिए पर्दे के पीछे से गेम चेंजर की भूमिका निभाया करते थे. प्रशांत किशोर का सक्रिय राजनीति में कदम रखना उनकी खुद की महत्वाकांक्षा बताई गई, जिसमें प्रशांत किशोर को यह उम्मीद थी कि बिहार में नीतीश कुमार के बाद जनता दल यूनाइटेड में वह नंबर दो के नेता होंगे और इस लिहाज से भविष्य में वह बिहार के सीएम बन जाएंगे. प्रशांत किशोर को भविष्य के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने के लिए उनकी कंपनी आईपैक ने पूरी तैयारी भी कर ली थी.

किंतु कुछ समय बाद प्रशांत किशोर का यह सपना चकनाचूर हो गया और इसके पीछे कारण बने आरसीपी सिंह और लल्लन सींह. आपको बता दें कि जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेताओं में से एक आरसीपी सिंह  हमेशा से खुद को नितीश कुमार का करीबी और खुद को नंबर दो का नेता मानते रहे है. वहीं ललन सिंह भी यही सोचते हैं कि नीतीश कुमार के बाद पार्टी में उनकी हैसियत नंबर दो की है. ऐसे में इन दो बड़े नेताओं के बीच पार्टी में प्रशांत किशोर एक कंकड़ की भांति खटकते रहे. साथ ही साथ प्रशांत किशोर के रिश्ते इन दोनों नेताओं से कभी अच्छे भी नहीं हो पाए, जिसका खामियाजा अंततः प्रशांत किशोर को निष्कासन के रूप में भुगतना पड़ा.

प्रशांत किशोर का T10 मिशन और चिराग पासवान का बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट मिशन एक सा लगता है क्यूं ?

निष्कासन के बाद प्रशांत किशोर ने अपना भविष्य कहीं और तलाशना शुरू कर दिया और शायद अभी के समीकरणों को देखकर ऐसा लगता है, जैसे प्रशांत किशोर अब चिराग पासवान के जरिए सक्रिय राजनीति में आगे बढ़ना चाहते हैं. अभी चिराग पासवान जिस तरीके से पिछले कुछ महीनों में बिहार में राजनीति कर रहे हैं, वो राजनीति का पैटर्न प्रशांत किशोर का ही है और शायद यह रणनीति प्रशांत किशोर के दिमाग से ही बुनी जा रही है. प्रशांत किशोर की राजनीति को समझने के लिए आपको सबसे पहले प्रशांत किशोर के T-10 मिशन को समझना होगा. टीम प्रशांत किशोर ने T-10 मिशन कैंपेन की योजना बनाई थी, जिसका मकसद बिहार को टॉप राज्य में लाना और भविष्य में प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री बनाना था. हालाकी जेडीयू से निष्कासन के बाद इस कैंपेन को टीम प्रशांत पूरा नहीं कर पाई. प्रशांत किशोर जब जनवरी के महीने में जनता दल यूनाइटेड से निकाले गए उसके ठीक बाद फरवरी में ही चिराग पासवान ने बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट कैंपेन की शुरुआत की और सबसे बड़ी बात यह है कि इस कैंपेन का ब्लूप्रिंट प्रशांत किशोर के की T-10 मिशन से बिल्कुल मिलता जुलता है. यानी बिहार को नंबर एक राज्य बनाने की बात लेकर जन जन तक पहुंचना.

प्रशांत किशोर को सोशल मीडिया एक्सपोर्ट मना जाता है, क्योंकि प्रशांत किशोर पार्टियों के प्रचार के लिए सोशल मीडिया का पूरी तरह से इस्तेमाल करते हैं और वह हर तिकड़म लगाते हैं जिससे पार्टी की आवाज जन जन तक जा सके. वही पिछले कुछ महीने से यह देखा जा रहा है कि चिराग पासवान भी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हो गए हैं. एक समय था जब बिहार के पिछड़ेपन की बात सिर्फ प्रशांत किशोर किया करते थे और आज उसी काम को चिराग पासवान सोशल मीडिया या फिर प्रिंट मीडिया के जरिए आगे बढ़ा रहे हैं और नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं.

प्रशांत किशोर अपने पेज 'बात बिहार की' पर 60 से 65 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं नीतीश के विरोध के लिए :

प्रशांत किशोर के निष्कासन का कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव भी बताया जाता है. आपको बता दें कि प्रशांत किशोर कि कंपनी दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी की मदद कर रही थी, वहीं प्रशांत किशोर की खुद की पार्टी जदयू जिसके वह उपाध्यक्ष थे वो भी दिल्ली में चुनाव लड़ रही थी. यही बात जनता दल यूनाइटेड के कई नेताओं को खटक रही थी कि प्रशांत किशोर खुद की पार्टी का प्रचार करने के बजाय दिल्ली चुनाव में किसी और पार्टी का प्रचार क्यों कर रहे हैं. साथ ही साथ सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर प्रशांत किशोर का नीतीश कुमार से मनमुटाव प्रशांत किशोर के निष्कासन का कारण बना.अंततः 

उन्हें 29 जनवरी 2020 को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इसके बाद प्रशांत किशोर ने वैकल्पिक नेतृत्‍व देने की बात कह कर बाकायदा ‘बात बिहार की’ नाम से कैंपेन का ऐलान किया.अगर हम फेसबुक पेज 'बात बिहार की' के बारे में बात करें तो यह पेज लगातार नितीश कुमार का विरोध प्रचार कर रही है. वहीं अगर हम एक मीडिया रिपोर्ट की माने तो इस पेज के कंटेंट को लोगों तक पहुंचाने के लिए बीते 8 महीने में प्रशांत किशोर ने 60 से 65 लाख रुपए खर्च किए हैं. वहीं अगर हम जमीनी स्तर की बात करें तो इस कैंपेन में कुछ खास हलचल नहीं दिखाई देती है. बहरहाल जो भी हो आने वाले दिनों में बीजेपी नीतीश कुमार का वैकल्पिक चेहरा तलाश कर रही है और शायद यही कारण है कि चिराग पासवान बीजेपी के विरुद्ध चुनाव लड़ के भी उनके साथ खड़े हैं और इसमें चिराग पासवान का बखूबी साथ दे रहे हैं प्रशांत किशोर.

बहुसंख्यक की हत्या पर लगातार बड़ी-बड़ी समाचार एजेंसी हिंदू शब्द गायब कर देती है आखिर यह दोगलापन क्यूं ?

October 12, 2020
अक्सर जब भी हम देश की राजनीति या संविधान की बात करते हैं तो उसमें चौथा स्तंभ मीडिया को माना जाता है. लेकिन बदलते समय के साथ मीडिया बिकाऊ हो चुका है. जहां हर तरफ पैसों की राजनीति हो रही है, वही गंदगी अब मीडिया में भी आ चुकी है. आज के तत्कालीन समय में हम देखें तो भारत की 70% से 80% मीडिया हाउस देश में सिर्फ और सिर्फ भड़काऊ या झूठी खबर दिखा रही है. जहां एक तरफ माना जाता है कि मीडिया के लिए कोई खबर छोटी या बड़ी नहीं होती, कोई धर्म छोटा या बड़ा नहीं होता, मीडिया के लिए हर एक तबका, हर एक समाज, हर एक धर्म बराबर होते है और मीडिया सिर्फ समाज की भलाई और सच्चाई दिखाने के लिए जानी जाती है. किंतु आज ऐसा वक्त आ गया है कि हमारे देश की मीडिया समाज में सिर्फ और सिर्फ जहर उगलने, झूठी खबरें दिखाने का काम कर रही है और वो भी खासकर बहुसंख्यक हिंदू समाज के विरुद्ध.

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बीते दिनों दिल्ली में प्रेम प्रसंग मामले में एक हिंदू युवक की हत्या मुस्लिमों द्वारा कर दी गई थी :
अगर आपको जानकारी हो तो हाल ही में बीते दिन राजधानी दिल्ली में एक 18 साल के मासूम को पीट-पीटकर मार दिया गया था, वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वह मुस्लिम समाज की एक लड़की से प्यार करता था. आपको बता दें कि मोहम्मद अफरोज और मोहम्मद राज ने अपने साथियों के साथ मिलकर 18 वर्ष के राहुल की बेरहमी से पीट पीट कर हत्या कर दी थी. खबर के अनुसार आरोपित मुस्लिम युवक अफरोज को अपनी 16 साल की नाबालिक बहन के एक हिंदू युवक राहुल के साथ प्रेम प्रसंग पर आपत्ति थी और सिर्फ इसीलिए इस वारदात को अंजाम दिया गया. अब आते हैं अहम मुद्दे पर जिस पर आज हमारे खबर की टैगलाइन है इस घटना के बाद तमाम बड़ी मीडिया ग्रुप्स ने खबर प्रकाशित की किंतु खबर के मूल तथ्यों को छिपा दिया. आपको बता दें कि इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, इंडिया टुडे और आज तक जैसी बड़ी-बड़ी समाचार एजेंसियों ने इस पर खबर प्रकाशित की. किंतु अपनी हेड लाइन में इन एजेंसियों ने आरोपियों की पहचान को आगे नहीं रखा, ना ही हत्या की असल वजह को बताया और ना ही मृतक की पहचान बताई गई.

आपको बता दें कि ऐसा पहली बार इन समाचार एजेंसियों ने नहीं किया है, अगर हम तीन-चार वर्ष पहले की बात करें तो ऐसी हरकत सिर्फ द हिंदू, एनडीटीवी, बिबिसी जैसी समाचार एजेंसी ही किया करती थी. लेकिन अब इस लिस्ट में और भी समाचार एजेंसियां शामिल हो गई है. हंसी तो तब आती है जब किसी अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति की हत्या या उत्पीड़न जैसे मामले सामने आते हैं तो यह समाचार एजेंसियों हर जरूरी से जरूरी तथ्यों को समाज के सामने रखती हैं, भले ही उन तथ्यों से समाज में दंगे जैसी स्थिति ही क्यों ना उत्पन हो जाए. किंतु जब वही बहुसंख्यक व्यक्ति की हत्या होती है तब यह समाचार एजेंसीया खबरों की हेडलाइन को ही बदल देती है और तथ्यों को तोड़ मरोड़ के समाज के सामने पेश करती हैं.

इंडिया टुडे खबरों की हेडलाइंस बदलने में और झूठी खबर दिखाने में लगातार कीर्तिमान स्थापित कर रहा है:
आपको जानकर हैरानी होगी कि बीते दिन दिल्ली में 18 वर्ष के हिंदू युवक की हत्या पर इंडिया टुडे ने खबर प्रकाशित की और अपनी खबर की हैडलाइन में इंडिया टुडे ने लिखा कि मरने वाला व्यक्ति दिल्ली विश्वविद्यालय का छात्र था, जिसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई, इसकी वजह थी एक लड़की की दोस्ती. अब आप खुद सोचिए इस हेड लाइन में ना तो लड़के का धर्म बताया गया और ना ही हत्या करने वाले व्यक्ति के मजहब के बारे में जानकारी दी गई, साथ ही साथ इस प्रेम प्रसंग को दोस्ती का नाम बता दिया गया.

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चलिए कुछ देर के लिए मान लेते हैं कि इंडिया टुडे ने खबर की हैडलाइन सिर्फ इसलिए बदली ताकि समाज में दंगे जैसी स्थिति ना उत्पन्न हो और भाईचारा बना रहे. किंतु यह सारी बातें झूठी और धुंधली साबित हो जाती है, जब हम इंडिया टुडे के 2019 के जून के महीने में झारखंड में स्थित खारसवान जिले वाली खबर पर नजर डालते हैं. जहां एक युवक को बुरी तरह पीट-पीटकर मार दिया गया था, इस खबर में इंडिया टुडे के हेड लाइन में मजहब भी था और पिटाई की तथाकथित वजह भी और साथ ही साथ खबर को पूरे तथ्यों के साथ पेश किया गया था. अब यह समझ पाना मुश्किल है कि दो अलग-अलग समाज के लिए अलग-अलग हेडलाइन क्यूं ?

इंडियन एक्सप्रेस का भी रंग पहचान ले जो मजहब के आधार पर खबर की हेडलाइन देता है :
अब बात करते हैं इंडियन एक्सप्रेस की जो कि देश का एक जाना माना समाचार एजेंसी है, यह समाचार एजेंसी भी खबरों की हेडलाइंस के साथ धर्म और मजहब देखकर खेलता है. आपको बता दें कि दिल्ली में 18 साल के हिंदू छात्र के हत्या मामले पर इंडियन एक्सप्रेस ने खबर प्रकाशित की. आपको जानकर हैरानी होगी कि इंडियन एक्सप्रेस ने इंडिया टुडे से एक कदम आगे बढ़कर इस घटना में मृतक को छात्र तक भी नहीं बताया और शीर्षक में लिखा गया "किल्ड ओवर ओमेन" यानी महिला की वजह से हत्या. अब यहां महिला कौन थी, हत्या करने वाला कौन था और जिसकी हत्या हुई वह कौन था इसके बारे में किसी भी तरह की हेड लाइन में जानकारी नहीं दी गई.

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अब चलिए हम फिर से एक बार इंडियान एक्सप्रेस के लिए भी मान लेते हैं कि समाज में भाईचारे का सद्भाव देखते हुए ऐसी हैडलाइन दी होगी, किंतु जब हम इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित खबर साल 2018 के अप्रैल महीने में झारखंड के गुमला जिले स्थित सोसो गांव की बात करते हैं जहां एक युवक की तीन युवकों ने हत्या कर दी थी. तब इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी खबर की हेड लाइन में मजहब बताया था, साथ ही साथ इंडियान एक्सप्रेस ने घटना का कारण भी बताया कि एक नाबालिग लड़की से रिश्ते के चलते अन्य मजहब के युवक की हत्या कर दी गई थी.

हिंदुस्तान टाइम्स भी ऐसी घटिया हरकत करने में पीछे नहीं रहा :
ऐसा ही हाल कुछ हिंदुस्तान टाइम्स का भी रहा जिसने अपनी खबर के शीर्षक में राहुल की हत्या के बारे में हेड लाइन देते हुए लिखा कि उसकी हत्या लड़की के परिजनों ने की, जिससे उसका संबंध था. यहां भी खबर के मूल तथ्यों को छिपाया गया कि हत्या करने वाले कौन थे और किस मजहब के थे. लेकिन वही जब हम साल 2018 के मई महीने में राजस्थान के बीकानेर जिले में घटित घटना पर नजर डालते हैं, जहां एक युवक की हत्या कर दी गई थी. तो उस खबर में हिंदुस्तान टाइम्स ने मरने वाले युवक का मजहब, मारने वालों का धर्म और यहां तक की खबर के तथ्यों की पूर्ण जानकारी दी थी. अब भगवान ही जाने यह दोगलापन धर्म और मजहब के आधार पर यह समाचार एजेंसीया कहां से लाती हैं.

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पहले भी धर्म के नाम पर इन समाचार एजेंसियों ने अपने खबर की हेड लाइन के साथ खेल खेला है :
बीते 2 वर्ष पहले भी अंकित सक्सेना के हत्या वाली घटना में इंडिया टुडे ने हत्या पर पर्दा डालने की कोशिश की थी. अगर आपको याद हो तो अंकित सक्सेना को उसकी प्रेमिका शहज़ादी के परिवार वालों ने सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि मुस्लिम लड़की का परिवार इनके रिश्ते से नाराज था. आपको बता दें कि 2018 की उस घटना में शहज़ादी की मां ने अपनी स्कूटी से धक्का देकर अंकित को गिराया था जिसके बाद शहजादी के पिता ने अंकित के गले को चाकू से रेत डाला था. उस वक्त भी "इंडिया टुडे" ने हेडलाइंस में धर्म और नाम छिपाने की कोशिश की थी. 

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अगर आपको याद हो तो बीते कुछ वर्ष पहले चंदन गुप्ता नाम के एक नौजवान युवक की हत्या 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर तिरंगा यात्रा के दौरान कर दी गई थी. इस खबर में भी इन तमाम समाचार एजेंसियों ने अपनी प्रकाशित खबरों में तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर रखने का प्रयास किया था. उस वक्त भी आज कि दिल्ली की खबर की तरह खबर कि  हेडलाइन में यह स्पष्ट नहीं बताया गया था कि जिसकी हत्या हुई वह कौन था और हत्यारे कौन थे और उनका नाम क्या था ? ये इंडिया टुडे, एनडीटीवी, इंडियन एक्सप्रेस और अन्य जैसे चैनल एक एजेंडे पर चलते हैं जिसमें यह टुकड़े टुकड़े गैंग का समर्थन करते हैं और देश को तोड़ने वाली रिपोर्टिंग और राजनीति करते हैं.
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आज तक ने रिपोर्टिंग की साड़ी घटिया हदें पार की राजस्थान में पुजारी की हत्या को बताया आत्मदाह पढ़े रिपोर्ट

October 11, 2020

जैसा की आप सबको पता है बीते दिन राजस्थान के करौली स्थित बुकना गांव में एक बड़ी वारदात को अंजाम दिया गया जिसमें एक पुजारी को 5 लोगों ने पेट्रोल छिट कर जिंदा जला कर मार दिया. आपको बता दें कि यह घटना जमीन विवाद के कारण अंजाम दी गई. जिसके बाद पुजारी के परिवार सहित उनके समर्थन में हजारों की संख्या में लोग राजस्थान की तत्कालीन कांग्रेस की अशोक गहलोत की सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने लगे. पुजारी के परिवार ने सरकार का विरोध करते हुए मुआवजे, एक सरकारी नौकरी और अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की मांग की.

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हाथरस के बाद राजस्थान के करौली वाले घटना में भी आजतक ने की निंदनीय रिपोर्टिंग :

आप सबको पता है बीते कुछ दिनों से हाथरस का मुद्दा काफी गर्म था, हाथरस के मुद्दे में तमाम मीडिया चैनल्स ने हर तरह की झूठी मनगढ़ंत कहानी फैलाने की कोशिश की. अगर आपको याद हो तो "इंडिया टुडे" के स्वामित्व वाले हिंदी समाचार चैनल "आज तक" ने हाथरस पर हर तरह की वह निंदनीय हरकत की जो एक मीडिया चैनल को नहीं करनी चाहिए थी और शायद यही कारण रहा कि हाथरस में आज तक की सीनियर पत्रकार श्वेता सिंह को आज तक मुर्दाबाद के नारे सुनने पड़े. अब फिर से एक बार आजतक ने अपना वही रंग दिखाते हुए राजस्थान की इस घटना पर गहलोत सरकार को जिम्मेदार ठहराने के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इसका इल्जाम डाल दिया. इसके अलावा समाचार चैनल ने इस घटना पर झूठी पत्रकारिता करते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि मंदिर के पुजारी की हत्या नहीं की गई थी, बल्कि पुजारी ने खुद आत्मदाह करके खुद को जलाया था.

आपको बता दें कि इस घटना को लेकर राजस्थान के करौली गांव से आज तक पर एक संवाददाता रिपोर्टिंग कर रहा था और उसी बीच संवाददाता पुजारी की घर की ओर इशारे इशारा करते हुए कहता है कि, "यह पीएम मोदी के आवास योजना के पीछे का कड़वा सच है". आजतक का संवाददाता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जहर उगलते हुए अपना हमला जारी रखता है और कहता है कि, "झोपड़ी की बदहाल स्थिति की वजह से पुजारी ने आत्मदाह किया था". साथ ही साथ रिपोर्टर कहता है कि, "यह संभव लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आवास योजना के तहत सभी को उचित आवास उपलब्ध कराने का सपना कभी सच होगा."

राजस्थान के पुजारी को जिंदा जलाने की घटना पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा है आज तक:

आज तक की रिपोर्टिंग देखकर ऐसा महसूस होता है कि कहीं ना कहीं इस घटना पर "इंडिया टुडे" का चैनल "आज तक" कहीं ना कहीं राजस्थान में कांग्रेस की गहलोत सरकार तथा कांग्रेस को बचाने का प्रयास कर रहा है और शायद यही कारण है कि हाथरस से लेकर राजस्थान के करौली गांव तक "आज तक" की झूठी रिपोर्टिंग बंद नहीं हो रही है.

आपको बता दें कि आजतक का रिपोर्टर एक डिबेट के दौरान भाजपा नेता राज्यवर्धन सिंह राठौर से उनके कर्तव्यों को लेकर सवाल करता है. आजतक का रिपोर्टर राज्यवर्धन सिंह से पूछता है कि, "क्या यह भाजपा और केंद्र की जिम्मेदारी नहीं है कि वह प्रत्येक नागरिक को उचित घर प्रदान करें". साथ ही साथ आजतक का रिपोर्टर यह सवाल करते हुए इस घटना का निष्कर्ष निकाल कहता है कि अगर पुजारी को भाजपा सरकार द्वारा रहने के लिए एक उचित घर मुहैया कराया गया होता तो आज पुजारी नहीं मरता. साफ तौर पर आज तक के रिपोर्टर की रिपोर्टिंग देखकर पता चलता है कि वह इस घटना की आड़ में कांग्रेस को बचाना और जनता को गुमराह कर रहा है.

आपको बता दें कि इंडिया टुडे के लिए यह निंदनीय हरकत कोई नई बात नहीं है. बल्कि इससे पहले भी इंडिया टुडे ने अपनी निंदनीय पत्रकारिता के जरिए अपना एजेंडा बढ़ाने की कोशिश करता रहा है. हाल ही में इंडिया टुडे का टीआरपी घोटाले में भी नाम उजागर हुआ है जहां इंडिया टुडे चैनल को देखने के लिए लोगों को रिश्वत देने का आरोप है.

बीते दिन 18 वर्षीय राहुल की क्रुर हत्या में भी इंडिया टुडे ने कि झूठी रिपोर्टिंग :

दिल्ली के आदर्श नगर में मुस्लिम समुदाय की युवती से प्रेम प्रसंग के मामले में 18 वर्षीय दलित युवक राहुल की क्रुर हत्या में "इंडिया टुडे" तथा इसी के चैनल "आज तक" ने इससे प्रेम प्रसंग की बजाए दोस्ती बताया और हर एक पहलू का विवरण देने की कोशिश की. किंतु हर बार की तरह इस बार भी बड़ी शातिर तरीके से इंडिया टुडे और आज तक ने अपनी हेड लाइन में आरोपियों का नाम और धर्म उजागर करना भूल गया और इस घटना में किसी तरह के प्रेम संबंध का उल्लेख ना करते हुए इसे दोस्ती करार दे दिया, ताकि अंतर धार्मिक प्रेम संबंध का विवरण देने से बचा जा सके. वहीं अगर यह घटना किसी बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय पर की गई होती तो "इंडिया टुडे" और "आज तक" मोटे मोटे अक्षरों में बहुसंख्यक समुदाय का धर्म और नाम उजागर करता.

अंकित सक्सेना वाले केस में भी इंडिया टुडे ने की थी झूठी रिपोर्टिंग :

बीते 2 वर्ष पहले भी अंकित सक्सेना के हत्या वाली घटना में इंडिया टुडे ने हत्या पर पर्दा डालने की कोशिश की थी. अगर आपको याद हो तो अंकित सक्सेना को उसकी प्रेमिका शहज़ादी के परिवार वालों ने सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि मुस्लिम लड़की का परिवार इनके रिश्ते से नाराज था. आपको बता दें कि 2018 की उस घटना में शहज़ादी की मां ने अपनी स्कूटी से धक्का देकर अंकित को गिराया था जिसके बाद शहजादी के पिता ने अंकित के गले को चाकू से रेत डाला था. उस वक्त भी "इंडिया टुडे" ने हेडलाइंस में धर्म और नाम छिपाने की कोशिश की थी. ये इंडिया टुडे एनडीटीवी जैसे चैनल एक एजेंडे पर चलते हैं जिसमें यह टुकड़े टुकड़े गैंग का समर्थन करते हैं और देश को तोड़ने वाली रिपोर्टिंग और राजनीति करते हैं.

अगर समय पर वैक्सीन नहीं आई तो कोरोना से मौत का आंकड़ा हो सकता है 20 लाख से ज्यादा, पढ़े ये रिपोर्ट

October 10, 2020
आज कोरोना ने पूरे विश्व में अपना कहर मचा रखा है, आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बीमारी से अब तक तकरीबन 10 लाख से ज्यादा लोगो की जान जा चुकी है. अब इसी बीच वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी डब्ल्यूएचओ की तरफ से एक नई चेतावनी जारी की गई है, जिसमें कहा गया है कि जब तक बड़े स्तर पर कोरोना वायरस की सफल वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो जाती है तब तक इस बीमारी से 20 लाख लोगों की जान जा सकती है. साथ ही साथ डब्ल्यूएचओ ने कहा कि अगर इस महामारी से दुनिया भर के देशों को मिलकर लड़ना होगा अगर ऐसा नहीं होता है तो मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है.

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वैक्सीन की उपलब्धता जरूरी वरना बढ़ेगा मौतों का आंकड़ा :
आपको बता दें कि बीते दिन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के आपातकालीन कार्यक्रमों के निदेशक माइक रेयान ने बताया कि जब तक ये महामारी रहेगी और जब तक वैक्सीन की उपलब्धता नहीं होगी तब तक इस बीमारी से 20 लाख मौतें काल्पनिक नहीं है. यह दुखद है, लेकिन ऐसा हो सकता है. माइक रेयान ने आगे कहा कि अभी तक इस बीमारी से तकरीबन 10 लाख लोगों की मौत हो चुकी है और अगर लोग और अन्य देश इस बीमारी से साथ मिलकर सामना नहीं करते हैं तो मौतों का आंकड़ा 20 लाख से ज्यादा भी हो सकता है.

कोरोना संक्रमण से 20 लाख मौत होना असंभव नहीं : माइक रेयान :
माइक रेयान ने चेतावनी देते हुए कहा कि पिछले कुछ समय से कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज बेहतर हुआ है, इसलिए इस बीमारी से मरने वालों की संख्या में कमी आएगी .... लेकिन इस बीमारी से वैक्सीन आने तक 20 लाख मौतें होना असंभव नहीं है. साथ ही माइक ने कहा कि बेहतर इलाज और सफल वैक्सीन की उपलब्धता ही मृतकों कि संख्या 20 लाख से पार जाने से रोक पाएगी. गौरतलब है कि कुछ देशों में इस महामारी की दूसरी लहर दस्तक दे चुकी है और वहां पर संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.

अब तक इस बीमारी से 3.7 करोड़ लोग संक्रमण की चपेट में :
आपको बता दें कि वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की तरफ से यह कड़ी चेतावनी ऐसे बुरे वक्त में आई है जब इस बीमारी से दुनिया भर में तकरीबन 3.7 करोड़ लोग चपेट में आ चुके हैं, वहीं 10 लाख से ज्यादा लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है.अगर सबसे ज्यादा संक्रमण की बात की जाए तो अभी तक अमेरिका, भारत और ब्राजील में कोरोना के सबसे ज्यादा मामले पाए गए हैं. अभी तक तीनों देश मिलाकर कुल संक्रमितों का आंकड़ा 2 करोड़ से ज्यादा है. हालांकि, पिछले कुछ दिनों से यूरोप के भी कई हिस्सों में संक्रमण के मामले बढ़े है. रेयान ने यूरोपीय देशों का जिक्र करते हुए कहा कि उस इलाके में महामारी के मामलों में चिंताजनक बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।

अमेरिका भारत और ब्राजील में संक्रमण और मौतों की संख्या सबसे ज्यादा :
आपको बता दें कि अमेरिका भारत और ब्राजील में ही सबसे ज्यादा संक्रमण की संख्या पाई गई है और इन्हीं 3 देशों में सबसे ज्यादा मौतें भी हुई है. कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला देश अमेरिका रहा है, जहां संक्रमण की संख्या 80 लाख रही है और यहां लगभग 2.18 लाख लोगों की मौत हुई है. वहीं अगर हम भारत की बात करें तो भारत दूसरे स्थान पर है, यहां पर संक्रमण की संख्या 70 लाख रही है और मौत की संख्या 1.8 लाख हो चुकी है. तीसरे नंबर पर इस महामारी में ब्राजील है, जहां पर संक्रमण की संख्या तकरीबन 50 लाख है और यहां पर मौतों का आंकड़ा 1.50 लाख रहा है.

महामारी के रफ्तार बढ़ने का कारण युवाओं को जिम्मेदार ठहराना गलत : रेयान :
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के आपातकालीन कार्यक्रमों के निदेशक माइक रेयान ने यह भी कहा कि हालिया के दिनों में कोरोना संक्रमण गिरफ्तार बढ़ने के लिए युवाओं की आबादी को जिम्मेदार ठहराना बिल्कुल गलत है. दरअसल आपको बता दें कि दुनिया भर में लॉकडाउन और अन्य पाबंदियां हटने के बाद युवाओं की आवाजाही बढ़ी है जिसके लिए कई संगठन ने युवाओं को संक्रमण बढ़ने का जिम्मेवार ठहराया हैं. इस पर रेयान ने कहा कि इसकी जगह सभी उम्र के लोगों का किसी इंडोर जगह पर इकट्ठा होना महामारी को रफ्तार दे रहा है.

TRP फर्जीवाड़ा में रिपब्लिक का नाम नहीं इंडिया टुडे का नाम पढ़ें कल से लेकर अब तक की पूरी स्टोरी की एनालिसिस

October 08, 2020
फेक टीआरपी के लिए रिपब्लिक टीवी ने नहीं बल्कि इंडिया टुडे ने फर्जीवाड़ा किया :

आपको बता दें कि बीते दिन दोपहर को मुंबई पुलिस कमिश्नर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और बताते हैं कि कुछ मीडिया टीवी चैनल्स ने टीआरपी बटोरने के लिए फर्जीवाड़ा किया है. जिसमें मुंबई पुलिस कमिश्नर रिपब्लिक टीवी का भी नाम लेते हैं. जिसके बाद अर्णब गोस्वामी इन सभी आरोपों का खंडन करते हुए इस खबर को झूठ बताते हैं. लेकिन जैसे-जैसे बीते दिन की शाम ढलती है, वैसे ही यह खबर तूल पकड़ती जाती है. आपको बता दें कि अभी के ताजा खुलासे के अनुसार हंसा रिसर्च ग्रुप प्राइवेट लिमिटेड के डिप्टी जनरल मैनेजर नितिन दियोकर द्वारा फाइल की गई एफआईआर को रिपब्लिक टीवी ने एक्सेस किया है, जिसमें साफ तौर पर यह पता चलता है कि एफआईआर में रिपब्लिक टीवी का नाम नहीं बल्कि इंडिया टुडे का नाम है.


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हंसा रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड के रिलेशनशिप मैनेजर विशाल भंडारी ने भी किया खुलासा
 
आपको बता दें कि रिपब्लिक टीवी के खबर के अनुसार मुंबई पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाने के बाद हंसा रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड के रिलेशनशिप मैनेजर विशाल भंडारी ने खुलासा किया है कि, "इंडिया टुडे तथा अन्य चैनलों ने उन्हें उकसाया और उन पैनल हाउसों को पैसे की पेशकश करने को कहा था जहां उन्होंने बार-ओ-मीटर सेट किए हैं".


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इतना ही नहीं विशाल भंडारी ने खुलासा करते हुए यह भी बताया कि विनय नाम के एक शख्स ने बीते वर्ष 2019 में 5 घरों में जाकर हर दिन इंडिया टुडे के समाचार को 2 घंटे देखने को कहा था. आपको बता दें कि रिपब्लिक टीवी बीते रात से एफआईआर की कॉपी के साथ लगातार इस खबर को जनता के सामने पेश कर रही है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि विनय ने 5 घरों के लिए ₹5000 कमीशन भी बांटा था, यानी हर एक घर को ₹1000 दिए जाते थे. यह सब सिर्फ इसलिए किया जाता था ताकि नवंबर 2019 से मई 2020 तक इंडिया टुडे हर दिन के हिसाब से 2 घंटों के लिए देखा जाए.

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राहुल कंवल और राजदीप सरदेसाई और अन्य मीडिया ग्रुप ने इस झूठी खबर के मौके का पूरा फायदा उठाया :

मुंबई पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह के प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद सभी मीडिया चैनल्स झुंड बनाकर इस झूठी खबर को चलाने में लग गए और जब इस खबर की सच्चाई सबके सामने आई है तो, एक भी न्यूज़ चैनल इस झूठे खबर को सच्चाई के साथ नहीं दिखा रहा. वही रिपब्लिक टीवी ने भी प्रतिक्रिया देते हुए मुंबई पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह पर मानहानि का मामला दर्ज करने की बात कही है. इन सबके बीच शिवसेना नेता संजय राउत ने भी ट्विटर पर इस झूठी खबर पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए मुंबई पुलिस कमिश्नर के प्रेस कॉन्फ्रेंस का जिक्र किया और लिखा असत्यमेव जयते. 

इस झूठी खबर के मौके का फायदा उठाते हुए अर्नब गोस्वामी के कट्टर विरोधी तथा इंडिया टुडे के सीनियर पत्रकार राहुल कंवल ने ट्वीट करते हुए अर्नब गोस्वामी पर निशाना साधा. साथ ही उन गरीब अनपढ़ लोगों के साथ अपनी संवेदनाएं जाहिर की जो इंग्लिश न्यूज़ चैनल को अपनी टीवी पर देखने के लिए पैसे लेते थे. राजदीप सरदेसाई ने भी बरी चलांकी के साथ इस झूठी खबर का ज़िक्र करते हुए रिपब्लिक टीवी का इस स्कैंडल में होने का जिक्र किया और ट्वीट करते हुए एक स्थानीय मराठी चैनल और एक मूवी चैनल के साथ रिपब्लिक टीवी का नाम जोड़ते हुए कहा कि मुंबई पुलिस ने फेक टीआरपी रैकेट का भंडाफोड़ किया है. लेकिन शायद राहुल कंवल को यह पता रहा होगा कि यह फर्जीवाड़ा रिपब्लिक टीवी नहीं बल्कि उनकी खुद की मीडिया ग्रुप इंडिया टुडे ऐसा करती है.

इंडिया टुडे के रिपोर्टर को अर्नब गोस्वामी ने एक छोटी सी मुस्कुराहट के साथ विक्ट्री साइन दिखाया :

आपको बता दें कि इस खबर के सामने आने के बाद इंडिया टुडे के रिपोर्टर मुस्तफा शेख गाड़ी ड्राइव कर रहे अर्नब गोस्वामी के पास सवाल जवाब करने के लिए पहुंचे. मगर सबसे दिलचस्प बात यह रही कि अर्णब गोस्वामी ने इंडिया टुडे के रिपोर्टर को कोई जवाब देने के बजाय दो उंगलियों से विक्ट्री साइन दिखाया. 

जिसके बाद इंडिया टुडे का रिपोर्टर मुस्तफा शेख चिढ़ गया और बार बार अर्णब गोस्वामी से सवाल करने के लिए उनकी गाड़ी के पीछे-आगे करता रहा. लेकिन फिर भी अर्णब गोस्वामी ने वहां तमाम मीडिया कर्मी तथा इंडिया टुडे के रिपोर्टर को एक छोटी सी मुस्कुराहट के साथ विक्ट्री साइन दिखाते रहे. इस बेज्जती के बाद इंडिया टुडे ने दावा किया है कि उनके पत्रकार को अर्णब के बाउंसर ने उनसे अलग कर दिया था. मुस्तफा अरनव से बार-बार एक ही सवाल पूछ रहे थे अर्णब  हम आपसे सवाल कर रहे हैं कि, यह आसान सवाल है, अगर आपने गलत नहीं किया, आप बेकसूर हैं तो आप हमारे साथ ऐसा क्यों बर्ताव कर रहे हैं, यदि आप कह रहे हैं कि यह आपकी जीत है तो सवालों का जवाब दीजिए अर्णब.

मुंबई पुलिस कमिश्नर के कांफ्रेंस के बाद अर्णब गोस्वामी ने एक वीडियो भी जारी किया :

आपको बता दें कि मुंबई पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह के प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद अर्णब गोस्वामी ने एक वीडियो जारी करते हुए कहा कि मुंबई पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह ने रिपब्लिक टीवी पर झूठे आरोप लगाए हैं. क्योंकि हमने उनसे सुशांत सिंह राजपूत मामले की जांच से जुड़े कई सवाल किए थे. साथ ही साथ अर्णब ने मुंबई पुलिस कमिश्नर पर आपराधिक मानहानि का दावा करने की बात भी कही. अर्णब गोस्वामी ने वीडियो के माध्यम से यह भी बताया कि BARC ने ऐसी एक भी रिपोर्ट जारी नहीं की है जिसमें रिपब्लिक टीवी का नाम शामिल हो.

अर्नब गोस्वामी ने बताया कि मुंबई पुलिस कमिश्नर द्वारा यह सिर्फ और सिर्फ निराशा में उठाया गया एक कदम है. क्योंकि रिपब्लिक टीवी ने पालघर मुद्दे, सुशांत सिंह के मुद्दे या इस तरह के किसी भी अन्य मुद्दे पर रिपोर्ट तैयार की. अर्नब गोस्वामी ने इस तरह निशाना बनाने की बातों का जिक्र करते हुए कहा कि हमारा संकल्प इससे और मजबूत होता है और सच की जमीन ठोश होती है. अर्णब गोस्वामी ने परमवीर सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि तुम्हारी असलियत सामने आ गई है, क्योंकि BARC की रिपोर्ट में रिपब्लिक टीवी का नाम कहीं नहीं है. साथी साथ अर्नब ने मुंबई पुलिस कमिश्नर से आधिकारिक तौर पर माफीनामा लिखने की बात भी कही और अदालत में परमवीर सिंह को सामना करने के लिए तैयार रहने को भी कहा.

 

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