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बिहार चुनाव में इस बार स्वर्ण उम्मीदवारों का दबदबा, राजद ने भी छोड़ा मुस्लिम-यादव कांसेप्ट

October 16, 2020

आपको बता दें कि बिहार में सभी पार्टियों के उम्मीदवारों ने अपने अपने पर्चे भर दिए हैं और इस बीच इस बार की राजनीति में ऐसी अनुभूति होती है जैसे मानो तीन दशक बाद बिहार की राजनीति में स्वर्ण राजनीति लौटती दिख रही है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि इस बार के बिहार चुनाव में टिकट बंटवारे में करीब करीब सभी दलों ने सवर्णों को तवज्जो दी है. जैसा कि हम पहले देखते रहे हैं कि राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड हमेशा से दलित और पिछड़ों की राजनीति करती आई है, किंतु इस बार सवर्णों का इन पार्टियों ने भी खासा ख्याल रखा है. वहीं अगर हम भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो अपने काफी उम्मीदवारों में बीजेपी ने भी सवर्णों को ही तवज्जो दी है.


सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात तो यह है की दलित और पिछड़ों की राजनीति करने वाले रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा भी इस बार की बिहार राजनीति में सवर्णों को टिकट देने में कोई कमी नहीं की है. आपको बता दें कि जेडीयू में सोशल इंजीनियरिंग के तहत अपने जनाधार वाली जातियों के अलावा महिलाओं के साथ-साथ सवर्णों को भी उम्मीदवार बनाया है.

बीजेपी ने 60% से ज्यादा स्वर्ण उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं :

अगर हम इस बार के बिहार चुनाव में टिकट वितरण की बात करें तो भाजपा ने अपने उतारे गए प्रत्याशियों में से 60 फ़ीसदी स्वर्ण समाज से अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. वहीं अगर कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस का भी आंकड़ा इसी के आसपास भटकता नजर आता है. लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि जनता दल यूनाइटेड ने इस बार पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले सवर्णों को ज्यादा मौका दिया है. वहीं राजद ने भी दलित और पिछड़ों की राजनीति छोड़ते हुए अपनी रणनीति में बदलाव किया है और इस बार 10 फ़ीसदी से ज्यादा स्वर्ण को टिकट दिया है. आपको बता दें कि राष्ट्रीय जनता दल ने स्वर्ण वोटरों को लुभाने के लिए अपने ही पार्टी के कद्दावर नेताओं के रिश्तेदारों को मैदान में उतारा है.

वहीं अगर स्वर्गीय राम विलास पासवान की पार्टी लोजपा की बात की जाए जो कि हमेशा से दलित राजनीति करती रही है उसने 35 फ़ीसदी से ज्यादा स्वर्ण को टिकट दिया है.

हिंदुत्व के एजेंडे के कारण सभी पार्टियां स्वर्ण वोटरों को साधने में लगी है :

अगर आपको मालूम हो तो 2013 लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व के एजेंडे को वाह आगे बढ़ाते हुए हर विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति तय की और इस रणनीति में भाजपा को अच्छे नतीजे भी मिले. इसी एजेंडे को देखते हुए कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने भी हिंदुत्व के एजेंडे पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर कर दिया है. शायद यही वजह है कि जो राजद पहले के बिहार विधानसभा चुनाव में माई समीकरण वाले कांसेप्ट पर चुनाव लड़ती थी, इसबार वो समीकरण  विधानसभा चुनाव में नहीं दिख रहा. आपको बता दें कि राजद पहले के विधानसभा चुनाव में माई कॉन्सेप्ट के आधार पर टिकट वितरण करती थी, माई कांसेप्ट यानी मुस्लिम यादव समीकरण के आधार पर प्रत्याशियों को टिकट दिए जाते थे और इन्हीं वोटरों को हमेशा से राजद लुभाने की कोशिश करती थी.

सबसे बड़ी बात यह रही कि इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पहले चरण में मात्र एक मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारा है और चौंकाने वाली बात यह है कि इसबार मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या पिछली बार की के विधानसभा चुनाव से काफी कम है.

क्या कहता है इतिहास का समीकरण बिहार की राजनीति में स्वर्ण वोटरों को लेकर :

अगर इतिहास के पन्नों में झांक कर देखे तो 1989 - 1990 के बाद बिहार में स्वर्ण राजनीति का घोर विरोध हुआ. आपको बता दें कि 1990 के दशक में डॉ जगन्नाथ मिश्र चुनाव हारे और लालू प्रसाद यादव की सत्ता में इंट्री हुई. जिसके बाद बिहार की राजनीति ने ऐसा करवट लिया की जनता दल यूनाइटेड ने खुले मंचों से सवर्णों को कोसना शुरू कर दिया कि वह हमेशा से ओबीसी और दलितों का शोषण करते रहे है. उस वक्त के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने माई कॉन्सेप्ट को मजबूती दी और साथ ही साथ ओबीसी दलित और एससी एसटी वोटरों को जातिवाद की राजनीति करके खूब लुभाया. लालू प्रसाद यादव ने उस दौर में बिहार की राजनीति में जातिवाद का ऐसा जहर घोला की हर तरफ जातिवाद कि लड़ाई शुरू हो गई और बिहार में गुंडाराज का ऐसा माहौल बना की जातियों के नाम पर हर तरफ खून खराबे, किडनैपिंग और फिरौती वसूली जैसे कार्य चरम पर पहुंच गए.

1992 में ब्राह्मणों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा और भाजपाई हो गए.इसी समय दलित राजनीति को रामविलास पासवान ने हवा दी, ओबीसी राजनीति पर लालू और नीतीश कुमार बंटे. 1994 में समता पार्टी बनी और नीतीश की समता पार्टी ने भी सवर्ण विरोधी राजनीति को हवा दी.

स्वर्ण वोटरों का एक बड़ा तबका बीजेपी और जेडीयू गठबंधन का समर्थक है :

1995 आते-आते भारतीय जनता पार्टी ने स्वर्ण राजनीति को मजबूती देने की कोशिश की जिसमें काफी तेजी भी देखने को मिली जब राम मंदिर विवाद शुरू हुआ. उस वक्त बिहार की राजनीति में राजपूत और भूमिहार नेता खुलकर सामने आने लगे, फिर भी बिहार से जातिवाद का जहर खत्म नहीं हुआ. 2003 में जनता दल यूनाइटेड के गठन के साथ नीतीश कुमार ने अपने पुराने रुख को बदला और बीजेपी के साथ मिलकर स्वर्ण वोटरों पर निशाना साधना शुरू किया, जिसमें 2005 के बाद जेडीयू और बीजेपी के गठबंधन ने स्वर्ण वोटरों को लगभग अपने पाले में बना लिया. आज फिर से एक बार 2020 विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियों को स्वर्ण मतदाताओं की चिंता सताने लगी है कि आखिर वह किस के पाले में अपना वोट देंगे.

अगर देखा जाए तो बीते कुछ महीनों में सुशांत सिंह राजपूत हत्या की हत्या ने भारत में खूब सुर्खियां बटोरी और इसकी एक बड़ी झांकी बिहार विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल रही है. माना तो ऐसा भी जा रहा है कि सुशांत सिंह राजपूत के कारण इस बार स्वर्ण वोटरों को राजनीतिक पार्टियां लुभाने की कोशिश कर रही हैं.


बहुसंख्यक की हत्या पर लगातार बड़ी-बड़ी समाचार एजेंसी हिंदू शब्द गायब कर देती है आखिर यह दोगलापन क्यूं ?

October 12, 2020
अक्सर जब भी हम देश की राजनीति या संविधान की बात करते हैं तो उसमें चौथा स्तंभ मीडिया को माना जाता है. लेकिन बदलते समय के साथ मीडिया बिकाऊ हो चुका है. जहां हर तरफ पैसों की राजनीति हो रही है, वही गंदगी अब मीडिया में भी आ चुकी है. आज के तत्कालीन समय में हम देखें तो भारत की 70% से 80% मीडिया हाउस देश में सिर्फ और सिर्फ भड़काऊ या झूठी खबर दिखा रही है. जहां एक तरफ माना जाता है कि मीडिया के लिए कोई खबर छोटी या बड़ी नहीं होती, कोई धर्म छोटा या बड़ा नहीं होता, मीडिया के लिए हर एक तबका, हर एक समाज, हर एक धर्म बराबर होते है और मीडिया सिर्फ समाज की भलाई और सच्चाई दिखाने के लिए जानी जाती है. किंतु आज ऐसा वक्त आ गया है कि हमारे देश की मीडिया समाज में सिर्फ और सिर्फ जहर उगलने, झूठी खबरें दिखाने का काम कर रही है और वो भी खासकर बहुसंख्यक हिंदू समाज के विरुद्ध.

Image Credit : Google


बीते दिनों दिल्ली में प्रेम प्रसंग मामले में एक हिंदू युवक की हत्या मुस्लिमों द्वारा कर दी गई थी :
अगर आपको जानकारी हो तो हाल ही में बीते दिन राजधानी दिल्ली में एक 18 साल के मासूम को पीट-पीटकर मार दिया गया था, वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वह मुस्लिम समाज की एक लड़की से प्यार करता था. आपको बता दें कि मोहम्मद अफरोज और मोहम्मद राज ने अपने साथियों के साथ मिलकर 18 वर्ष के राहुल की बेरहमी से पीट पीट कर हत्या कर दी थी. खबर के अनुसार आरोपित मुस्लिम युवक अफरोज को अपनी 16 साल की नाबालिक बहन के एक हिंदू युवक राहुल के साथ प्रेम प्रसंग पर आपत्ति थी और सिर्फ इसीलिए इस वारदात को अंजाम दिया गया. अब आते हैं अहम मुद्दे पर जिस पर आज हमारे खबर की टैगलाइन है इस घटना के बाद तमाम बड़ी मीडिया ग्रुप्स ने खबर प्रकाशित की किंतु खबर के मूल तथ्यों को छिपा दिया. आपको बता दें कि इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, इंडिया टुडे और आज तक जैसी बड़ी-बड़ी समाचार एजेंसियों ने इस पर खबर प्रकाशित की. किंतु अपनी हेड लाइन में इन एजेंसियों ने आरोपियों की पहचान को आगे नहीं रखा, ना ही हत्या की असल वजह को बताया और ना ही मृतक की पहचान बताई गई.

आपको बता दें कि ऐसा पहली बार इन समाचार एजेंसियों ने नहीं किया है, अगर हम तीन-चार वर्ष पहले की बात करें तो ऐसी हरकत सिर्फ द हिंदू, एनडीटीवी, बिबिसी जैसी समाचार एजेंसी ही किया करती थी. लेकिन अब इस लिस्ट में और भी समाचार एजेंसियां शामिल हो गई है. हंसी तो तब आती है जब किसी अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति की हत्या या उत्पीड़न जैसे मामले सामने आते हैं तो यह समाचार एजेंसियों हर जरूरी से जरूरी तथ्यों को समाज के सामने रखती हैं, भले ही उन तथ्यों से समाज में दंगे जैसी स्थिति ही क्यों ना उत्पन हो जाए. किंतु जब वही बहुसंख्यक व्यक्ति की हत्या होती है तब यह समाचार एजेंसीया खबरों की हेडलाइन को ही बदल देती है और तथ्यों को तोड़ मरोड़ के समाज के सामने पेश करती हैं.

इंडिया टुडे खबरों की हेडलाइंस बदलने में और झूठी खबर दिखाने में लगातार कीर्तिमान स्थापित कर रहा है:
आपको जानकर हैरानी होगी कि बीते दिन दिल्ली में 18 वर्ष के हिंदू युवक की हत्या पर इंडिया टुडे ने खबर प्रकाशित की और अपनी खबर की हैडलाइन में इंडिया टुडे ने लिखा कि मरने वाला व्यक्ति दिल्ली विश्वविद्यालय का छात्र था, जिसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई, इसकी वजह थी एक लड़की की दोस्ती. अब आप खुद सोचिए इस हेड लाइन में ना तो लड़के का धर्म बताया गया और ना ही हत्या करने वाले व्यक्ति के मजहब के बारे में जानकारी दी गई, साथ ही साथ इस प्रेम प्रसंग को दोस्ती का नाम बता दिया गया.

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चलिए कुछ देर के लिए मान लेते हैं कि इंडिया टुडे ने खबर की हैडलाइन सिर्फ इसलिए बदली ताकि समाज में दंगे जैसी स्थिति ना उत्पन्न हो और भाईचारा बना रहे. किंतु यह सारी बातें झूठी और धुंधली साबित हो जाती है, जब हम इंडिया टुडे के 2019 के जून के महीने में झारखंड में स्थित खारसवान जिले वाली खबर पर नजर डालते हैं. जहां एक युवक को बुरी तरह पीट-पीटकर मार दिया गया था, इस खबर में इंडिया टुडे के हेड लाइन में मजहब भी था और पिटाई की तथाकथित वजह भी और साथ ही साथ खबर को पूरे तथ्यों के साथ पेश किया गया था. अब यह समझ पाना मुश्किल है कि दो अलग-अलग समाज के लिए अलग-अलग हेडलाइन क्यूं ?

इंडियन एक्सप्रेस का भी रंग पहचान ले जो मजहब के आधार पर खबर की हेडलाइन देता है :
अब बात करते हैं इंडियन एक्सप्रेस की जो कि देश का एक जाना माना समाचार एजेंसी है, यह समाचार एजेंसी भी खबरों की हेडलाइंस के साथ धर्म और मजहब देखकर खेलता है. आपको बता दें कि दिल्ली में 18 साल के हिंदू छात्र के हत्या मामले पर इंडियन एक्सप्रेस ने खबर प्रकाशित की. आपको जानकर हैरानी होगी कि इंडियन एक्सप्रेस ने इंडिया टुडे से एक कदम आगे बढ़कर इस घटना में मृतक को छात्र तक भी नहीं बताया और शीर्षक में लिखा गया "किल्ड ओवर ओमेन" यानी महिला की वजह से हत्या. अब यहां महिला कौन थी, हत्या करने वाला कौन था और जिसकी हत्या हुई वह कौन था इसके बारे में किसी भी तरह की हेड लाइन में जानकारी नहीं दी गई.

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अब चलिए हम फिर से एक बार इंडियान एक्सप्रेस के लिए भी मान लेते हैं कि समाज में भाईचारे का सद्भाव देखते हुए ऐसी हैडलाइन दी होगी, किंतु जब हम इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित खबर साल 2018 के अप्रैल महीने में झारखंड के गुमला जिले स्थित सोसो गांव की बात करते हैं जहां एक युवक की तीन युवकों ने हत्या कर दी थी. तब इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी खबर की हेड लाइन में मजहब बताया था, साथ ही साथ इंडियान एक्सप्रेस ने घटना का कारण भी बताया कि एक नाबालिग लड़की से रिश्ते के चलते अन्य मजहब के युवक की हत्या कर दी गई थी.

हिंदुस्तान टाइम्स भी ऐसी घटिया हरकत करने में पीछे नहीं रहा :
ऐसा ही हाल कुछ हिंदुस्तान टाइम्स का भी रहा जिसने अपनी खबर के शीर्षक में राहुल की हत्या के बारे में हेड लाइन देते हुए लिखा कि उसकी हत्या लड़की के परिजनों ने की, जिससे उसका संबंध था. यहां भी खबर के मूल तथ्यों को छिपाया गया कि हत्या करने वाले कौन थे और किस मजहब के थे. लेकिन वही जब हम साल 2018 के मई महीने में राजस्थान के बीकानेर जिले में घटित घटना पर नजर डालते हैं, जहां एक युवक की हत्या कर दी गई थी. तो उस खबर में हिंदुस्तान टाइम्स ने मरने वाले युवक का मजहब, मारने वालों का धर्म और यहां तक की खबर के तथ्यों की पूर्ण जानकारी दी थी. अब भगवान ही जाने यह दोगलापन धर्म और मजहब के आधार पर यह समाचार एजेंसीया कहां से लाती हैं.

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पहले भी धर्म के नाम पर इन समाचार एजेंसियों ने अपने खबर की हेड लाइन के साथ खेल खेला है :
बीते 2 वर्ष पहले भी अंकित सक्सेना के हत्या वाली घटना में इंडिया टुडे ने हत्या पर पर्दा डालने की कोशिश की थी. अगर आपको याद हो तो अंकित सक्सेना को उसकी प्रेमिका शहज़ादी के परिवार वालों ने सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि मुस्लिम लड़की का परिवार इनके रिश्ते से नाराज था. आपको बता दें कि 2018 की उस घटना में शहज़ादी की मां ने अपनी स्कूटी से धक्का देकर अंकित को गिराया था जिसके बाद शहजादी के पिता ने अंकित के गले को चाकू से रेत डाला था. उस वक्त भी "इंडिया टुडे" ने हेडलाइंस में धर्म और नाम छिपाने की कोशिश की थी. 

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अगर आपको याद हो तो बीते कुछ वर्ष पहले चंदन गुप्ता नाम के एक नौजवान युवक की हत्या 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर तिरंगा यात्रा के दौरान कर दी गई थी. इस खबर में भी इन तमाम समाचार एजेंसियों ने अपनी प्रकाशित खबरों में तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर रखने का प्रयास किया था. उस वक्त भी आज कि दिल्ली की खबर की तरह खबर कि  हेडलाइन में यह स्पष्ट नहीं बताया गया था कि जिसकी हत्या हुई वह कौन था और हत्यारे कौन थे और उनका नाम क्या था ? ये इंडिया टुडे, एनडीटीवी, इंडियन एक्सप्रेस और अन्य जैसे चैनल एक एजेंडे पर चलते हैं जिसमें यह टुकड़े टुकड़े गैंग का समर्थन करते हैं और देश को तोड़ने वाली रिपोर्टिंग और राजनीति करते हैं.
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आज तक ने रिपोर्टिंग की साड़ी घटिया हदें पार की राजस्थान में पुजारी की हत्या को बताया आत्मदाह पढ़े रिपोर्ट

October 11, 2020

जैसा की आप सबको पता है बीते दिन राजस्थान के करौली स्थित बुकना गांव में एक बड़ी वारदात को अंजाम दिया गया जिसमें एक पुजारी को 5 लोगों ने पेट्रोल छिट कर जिंदा जला कर मार दिया. आपको बता दें कि यह घटना जमीन विवाद के कारण अंजाम दी गई. जिसके बाद पुजारी के परिवार सहित उनके समर्थन में हजारों की संख्या में लोग राजस्थान की तत्कालीन कांग्रेस की अशोक गहलोत की सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने लगे. पुजारी के परिवार ने सरकार का विरोध करते हुए मुआवजे, एक सरकारी नौकरी और अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की मांग की.

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हाथरस के बाद राजस्थान के करौली वाले घटना में भी आजतक ने की निंदनीय रिपोर्टिंग :

आप सबको पता है बीते कुछ दिनों से हाथरस का मुद्दा काफी गर्म था, हाथरस के मुद्दे में तमाम मीडिया चैनल्स ने हर तरह की झूठी मनगढ़ंत कहानी फैलाने की कोशिश की. अगर आपको याद हो तो "इंडिया टुडे" के स्वामित्व वाले हिंदी समाचार चैनल "आज तक" ने हाथरस पर हर तरह की वह निंदनीय हरकत की जो एक मीडिया चैनल को नहीं करनी चाहिए थी और शायद यही कारण रहा कि हाथरस में आज तक की सीनियर पत्रकार श्वेता सिंह को आज तक मुर्दाबाद के नारे सुनने पड़े. अब फिर से एक बार आजतक ने अपना वही रंग दिखाते हुए राजस्थान की इस घटना पर गहलोत सरकार को जिम्मेदार ठहराने के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इसका इल्जाम डाल दिया. इसके अलावा समाचार चैनल ने इस घटना पर झूठी पत्रकारिता करते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि मंदिर के पुजारी की हत्या नहीं की गई थी, बल्कि पुजारी ने खुद आत्मदाह करके खुद को जलाया था.

आपको बता दें कि इस घटना को लेकर राजस्थान के करौली गांव से आज तक पर एक संवाददाता रिपोर्टिंग कर रहा था और उसी बीच संवाददाता पुजारी की घर की ओर इशारे इशारा करते हुए कहता है कि, "यह पीएम मोदी के आवास योजना के पीछे का कड़वा सच है". आजतक का संवाददाता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जहर उगलते हुए अपना हमला जारी रखता है और कहता है कि, "झोपड़ी की बदहाल स्थिति की वजह से पुजारी ने आत्मदाह किया था". साथ ही साथ रिपोर्टर कहता है कि, "यह संभव लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आवास योजना के तहत सभी को उचित आवास उपलब्ध कराने का सपना कभी सच होगा."

राजस्थान के पुजारी को जिंदा जलाने की घटना पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा है आज तक:

आज तक की रिपोर्टिंग देखकर ऐसा महसूस होता है कि कहीं ना कहीं इस घटना पर "इंडिया टुडे" का चैनल "आज तक" कहीं ना कहीं राजस्थान में कांग्रेस की गहलोत सरकार तथा कांग्रेस को बचाने का प्रयास कर रहा है और शायद यही कारण है कि हाथरस से लेकर राजस्थान के करौली गांव तक "आज तक" की झूठी रिपोर्टिंग बंद नहीं हो रही है.

आपको बता दें कि आजतक का रिपोर्टर एक डिबेट के दौरान भाजपा नेता राज्यवर्धन सिंह राठौर से उनके कर्तव्यों को लेकर सवाल करता है. आजतक का रिपोर्टर राज्यवर्धन सिंह से पूछता है कि, "क्या यह भाजपा और केंद्र की जिम्मेदारी नहीं है कि वह प्रत्येक नागरिक को उचित घर प्रदान करें". साथ ही साथ आजतक का रिपोर्टर यह सवाल करते हुए इस घटना का निष्कर्ष निकाल कहता है कि अगर पुजारी को भाजपा सरकार द्वारा रहने के लिए एक उचित घर मुहैया कराया गया होता तो आज पुजारी नहीं मरता. साफ तौर पर आज तक के रिपोर्टर की रिपोर्टिंग देखकर पता चलता है कि वह इस घटना की आड़ में कांग्रेस को बचाना और जनता को गुमराह कर रहा है.

आपको बता दें कि इंडिया टुडे के लिए यह निंदनीय हरकत कोई नई बात नहीं है. बल्कि इससे पहले भी इंडिया टुडे ने अपनी निंदनीय पत्रकारिता के जरिए अपना एजेंडा बढ़ाने की कोशिश करता रहा है. हाल ही में इंडिया टुडे का टीआरपी घोटाले में भी नाम उजागर हुआ है जहां इंडिया टुडे चैनल को देखने के लिए लोगों को रिश्वत देने का आरोप है.

बीते दिन 18 वर्षीय राहुल की क्रुर हत्या में भी इंडिया टुडे ने कि झूठी रिपोर्टिंग :

दिल्ली के आदर्श नगर में मुस्लिम समुदाय की युवती से प्रेम प्रसंग के मामले में 18 वर्षीय दलित युवक राहुल की क्रुर हत्या में "इंडिया टुडे" तथा इसी के चैनल "आज तक" ने इससे प्रेम प्रसंग की बजाए दोस्ती बताया और हर एक पहलू का विवरण देने की कोशिश की. किंतु हर बार की तरह इस बार भी बड़ी शातिर तरीके से इंडिया टुडे और आज तक ने अपनी हेड लाइन में आरोपियों का नाम और धर्म उजागर करना भूल गया और इस घटना में किसी तरह के प्रेम संबंध का उल्लेख ना करते हुए इसे दोस्ती करार दे दिया, ताकि अंतर धार्मिक प्रेम संबंध का विवरण देने से बचा जा सके. वहीं अगर यह घटना किसी बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय पर की गई होती तो "इंडिया टुडे" और "आज तक" मोटे मोटे अक्षरों में बहुसंख्यक समुदाय का धर्म और नाम उजागर करता.

अंकित सक्सेना वाले केस में भी इंडिया टुडे ने की थी झूठी रिपोर्टिंग :

बीते 2 वर्ष पहले भी अंकित सक्सेना के हत्या वाली घटना में इंडिया टुडे ने हत्या पर पर्दा डालने की कोशिश की थी. अगर आपको याद हो तो अंकित सक्सेना को उसकी प्रेमिका शहज़ादी के परिवार वालों ने सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि मुस्लिम लड़की का परिवार इनके रिश्ते से नाराज था. आपको बता दें कि 2018 की उस घटना में शहज़ादी की मां ने अपनी स्कूटी से धक्का देकर अंकित को गिराया था जिसके बाद शहजादी के पिता ने अंकित के गले को चाकू से रेत डाला था. उस वक्त भी "इंडिया टुडे" ने हेडलाइंस में धर्म और नाम छिपाने की कोशिश की थी. ये इंडिया टुडे एनडीटीवी जैसे चैनल एक एजेंडे पर चलते हैं जिसमें यह टुकड़े टुकड़े गैंग का समर्थन करते हैं और देश को तोड़ने वाली रिपोर्टिंग और राजनीति करते हैं.

 

हम राजनीती एवं इतिहास का एक अभूतपूर्व मिश्रण हैं.हम अपने धर्म की ऐतिहासिक तर्क-वितर्क की परंपरा को परिपुष्ट रखना चाहते हैं.हम विविध क्षेत्रों,व्यवसायों,सोंच और विचारों से हो सकते हैं,किन्तु अपनी संस्कृति की रक्षा,प्रवर्तन एवं कृतार्थ हेतु हमारा लगन और उत्साह हमें एकजुट बनाये रखता है.हम एक ऐसे प्रपंच में कदम रख रहें हैं जहां हमारे धर्म,शास्त्रों नियमों को कुरूपता और विकृति के साथ निवेदित किया जा रहा है.हम अपने धार्मिक ऐतिहासिक यथार्थता को समाज के सामने स्पष्ट करना चाहते है,जहाँ पुराने नियम प्रसंगगिक नहीं रहे.हम आपके विचारों के प्रतिबिंब हैं,हम आपकी अभिव्यक्ति के स्वर हैं और हम आपको निमंत्रित करते हैं,आपका अपना मंच 'IndicWing' पर,सारे संसार तक अपना निनाद पहुंचायें!

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