Showing posts with label Bihar Election. Show all posts
Showing posts with label Bihar Election. Show all posts

IAS की पत्नी,माँ,भतीजी से 2 साल तक रेप, करवाना पड़ा था अबॉर्शन,कौन था वो राजद नेता ?

October 16, 2020
RJD

बिहार में चुनाव बा, कोई ना जाने जानेला 2020 में केकर सरकार बा......जैसा की आप सबको पता है, बिहार में अभी विधानसभा चुनाव का दौर चल रहा है. इसी बीच हम आपको बिहार में लालू यादव के जंगल राज के दौर का एक ऐसा किस्सा सुनाते हैं, जिससे आपकी रूह ही नहीं आपकी आत्मा भी कांप जाएगी. बात है उन दिनों के जंगलराज की जब जनता की तो छोड़िए आईएएस अधिकारी तक सुरक्षित नहीं थे. ऐसे ही एक अधिकारी की पत्नी थी चंपा विश्वास, उस दौर के जंगल राज में उस अधिकारी की पत्नी चंपा विश्वास के साथ एक ऐसी रेप की घटना सामने आई जिसने बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया था. उस वक़्त के बिहार की बात की जाए तो बिहार में गुंडागर्दी, मर्डर, रेप, फिरौती जैसी घटनाएं जंगलराज में आम हो चली थी और शायद यही कारण था कि बिहार जो कभी पूरे विश्व को ज्ञान का पाठ पढ़ाया करता था वह सिर्फ और सिर्फ जंगलराज का पाठ पढ़ा रहा था.


आईएएस की पत्नी ही नहीं बल्कि उसके परिवार वालों के साथ भी 2 वर्षों तक बलात्कार किए गए :

लालू के जंगल राज का दौर ऐसा था मानो हत्याएं अपहरण और फिरौती की घटनाएं इतनी आम हो चली थी कि लोगों ने इन खबरों को खबर ही मानना छोड़ दिया था. उस वक्त के सत्ताधारी पार्टी के नेता ही गुंडे थे और उनके पाले हुए चमचे खुले तौर पर हत्या, बलात्कार और किडनैपिंग जैसी वारदात को अंजाम देते थे और सत्ताधारी नेताओं का हाथ उन पर होने के कारण उन पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती थी. आपको बता दें कि आईएएस अधिकारी बीबी विश्वास ने जब जंगल राज के शहंशाह लालू यादव के करीबी मृत्युंजय यादव पर 2 साल में न सिर्फ उनकी पत्नी बल्कि उनके और कई सगे संबंधियों का भी रेप करने का आरोप लगाया तो मानो पूरे बिहार और देश में हड़कंप सा मच गया.

अगर इस मामले की शिकायत पुलिस में की जाती तो शायद यह शिकायत या तो फाइलों के इतिहास में कहीं दब सी जाति या फिर उल्टा पुलिस पीड़ितों के खिलाफ ही कार्रवाई करती, क्योंकि इस घटना को अंजाम दिया था उस वक्त के जंगल राज के सुप्रीमो लालू यादव के एक करीबी ने. फिर भी यह मामला लाइमलाइट में तब आया जब पीड़िता ने बिहार के तत्कालीन राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी को पत्र लिखकर न्याय की मांग की.

चंपा विश्वास के साथ इतनी बार बलात्कार किया गया कि उन्हें अपना एबॉर्शन तक करवाना पड़ा था :

आपको बता दें कि 1982 बैच के आईएएस अधिकारी बीवी विश्वास तब बिहार के लेबर विभाग में सोशल सिक्योरिटी के डायरेक्टर हुआ करते थे. बीवी विश्वास ने लालू यादव के करीबी मृत्युंजय पर आरोप लगाया था कि उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर न सिर्फ उनकी पत्नी बल्कि उनकी मां, 2 मेड और भतीजी तक के साथ बलात्कार किया था. साथ ही साथ बीवी विश्वास ने यह भी बताया था कि उस दरिंदे नेता ने इसके लिए धमकी, लालच, जोर-जबर्दस्ती और हिंसा तक का भी सहारा लिया था. तब चंपा विश्वास 30 साल की थी

इस घटना में चंपा विश्वास को एक बार एबॉर्शन भी करवाना पड़ा था. अंत में स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि चंपा विश्वास को अपना Sterlization ही करवाना पड़ा. आपको बता दें कि कई बार बलात्कार किए जाने के कारण बार-बार गर्भवती होने से बचने के लिए चंपा विश्वास ने यह कदम उठाया था तब उन्होंने यह भी अंदेशा जताया था कि उनकी भतीजी कल्याणी और 2 मेड सर्वेन्ट्स,जो गायब हो गई थी उनकी बलात्कार के बाद हत्या भी की गई होगी. इतनी दरिंदगी भारी घटना को लेकर जब राज्यपाल को पत्र लिखा गया तब राज्यपाल ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए गृह मंत्रालय को इस मामले को देखने की सिफारिश की थी.साथ ही उन्होंने बिहार के तत्कालीन डीजीपी नियाज अहमद को भी इसकी जाँच करने के आदेश दिए थे.

इस घटना के बाद बीबी विश्वास अपने परिवार के साथ दिल्ली शिफ़्ट हो गए थे :

8 अगस्त 1998 को भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था और कहा था कि बिहार में अब प्रभावशाली और सम्मानित परिवारों की महिलाएं भी सुरक्षित नहीं है और असहाय हैं, क्योंकि राजद के गुंडों को लगता है कि वह कुछ भी कर कर बच निकल सकते हैं. आपको बता दें कि बीबी विश्वास इतने बड़े अधिकारी होने के बावजूद भी अपने परिवार को नहीं बचा पाए, अब आप इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि उस दौड़ में बिहार में किस तरह का जंगलराज होगा.

इस घटना के बाद बीवी विश्वास अपने पूरे परिवार के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गए थे. वही चंपा विश्वास ने अपने पति के जीवन को खतरा बताते हुए कहा था कि, "उनके पति को इस घटना की जानकारी काफी बाद में मिली". साथ ही साथ आपको ये भी बता दे कि मृत्युंजय की मां हेमलता यादव विधायक रह चुकी थी और वह बिहार सोशल वेलफेयर एडवाइजरी बोर्ड की अध्यक्ष थी.

इस खबर पर राजद नेताओं ने बेशर्मी भरा बयान देकर मृत्युंजय यादव का बचाव भी किया था :

मृत्युंजय यादव ने इन खबरों को गलत बताते हुए कहा था कि ये उनके और उनकी मां के खिलाफ एक सोची समझी साजिश है. साथ ही साथ मृत्युंजय यादव ने  बीबी विश्वास पर अपनी ड्यूटी ठीक से ना करने और दफ्तर से गायब रहने तक के आरोप भी लगाए था. वहीं अगर उस वक़्त के राजद की व्हिप मोहम्मद नमतुल्लाह की बात की जाए तो उन्होंने शर्मनाक बयान देते हुए कहा था कि वह हेमलता के परिवार को व्यक्तिगत रूप से अच्छी तरह जानते हैं और वह लड़का ऐसा नहीं कर सकता.

मोहम्मद नमतुल्लाह का यह बयान ठीक वैसा ही था जैसा अखिलेश यादव की सरकार में रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने एक बार बलात्कारियों को लेकर बयान देते हुए कहा था कि, "लड़के हैं गलती तो हो ही जाती है". आपको बता दें कि इस घटना से 3 साल पहले भी मृत्युंजय यादव पर एक राजनेता की बेटी का यौन शोषण करने के लिए गिरफ्तार किया गया था और उस वक्त भी लालू यादव का करीबी होने के कारण मृत्युंजय यादव कुछ नहीं बिगाड़ पाई थी.

चम्पा विश्वाश से मृत्युंजय यादव ने शादी की जबरदस्ती की और ना करने पर उनका बलात्कार किया गया :

वक्त के बीते पन्नों में झाक कर देखे तो उस वक्त बीबी विश्वास का पूरा परिवार पटना बेली रोड स्थित सरकारी क्वार्टर में रहा करता था. उस वक्त चंपा विश्वाश ने अपनी दर्ज शिकायतों में बताया था कि, उनके बगल के क्वार्टर में रहने वाले अधिकारी और उनकी पत्नी उन्हें बुलाकर अपने फ्लैट पर ले गए थे. जहां मृत्युंजय यादव और उसकी मां हेमलता पहले से ही मौजूद थे, जिसके बाद उन लोगों ने चंपा विश्वास को मृत्युंजय यादव के साथ जबरदस्ती अकेले कमरे में बंद कर दिया था. उसके बाद मृत्युंजय यादव ने चंपा विश्वास का बलात्कार किया. आरोप में यह भी बताया गया कि हेमलता ने चंपा विश्वास को धमकाया कि इस बारे में अगर चंपा विश्वास ने किसी को बताया तो उनके परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी जाएगी और साथ ही साथ बलात्कार कि आपत्तिजनक तस्वीर भी सार्वजनिक कर दी जाएगी.

चंपा विश्वास ने अपने बयान में यह भी बताया था कि, एक दिन अचानक से फिर से मृत्युंजय यादव अपनी मां हेमलता यादव और कुछ लोगों के साथ कैमरा लेकर आ धमका और चंपा विश्वास के साथ शादी की जिद की. हेमलता यादव ने चंपा विश्वास के साथ जबरदस्ती करते हुए कहां की मृत्युंजय स्मार्ट है और बड़े परिवार से है इसलिए चंपा विश्वास को उससे शादी कर लेनी चाहिए. साथ ही साथ हेमलता यादव ने चंपा विश्वास के पति को बूढ़ा बताते हुए कहा कि शादी के बाद चंपा विश्वास को कहीं का अध्यक्ष बना दिया जाएगा. जब चम्पा विश्वास ने इसका विरोध किया तो उनके साथ मृत्युंजय यादव ने फिर से बलात्कार किया.

चंपा विश्वास की मां और भतीजी के साथ भी मृत्युंजय ने बलात्कार की कोशिश की थी :

शिकायत में आगे बताया गया कि दिसंबर 1995 में एक बार फिर से मृत्युंजय यादव, चंपा विश्वास के घर पहुंचा और उसने चंपा विश्वास की मां को किचन में देखा. जिसके बाद मृत्युंजय ने चंपा विश्वास की मां के साथ जबरदस्ती की और उन्हें जबरन किस करने की कोशिश की. इन घटनाओं को देखकर चंपा विश्वास की घबराई मां ने उन्हें परिवार सहित  फ्लैट खाली करने को कहा. कुछ इसी तरह मृत्युंजय ने चंपा विश्वास की भतीजी कल्याणी के साथ भी बलात्कार किया. मृत्युंजय घर की मेड से कह कर बीबी विश्वास को ड्रग्स दिया करता था ताकि वह बेहोश हो जाए और मृत्युंजय अपनी मनमानी कर सके.

नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन को भेजे गए अपने पत्र में चंपा विश्वास ने बताया था कि बिहार के एक बहुत बड़े बाहुबली नेता जंगलराज के मसीहा ने उनके साथ बलात्कार किया. साथ ही साथ चंपा विश्वास ने यह आरोप भी लगाया था कि पुलिस ने भी उनके बयान को हुबहू कोर्ट में पेश नहीं किया, जैसा उन्होंने बयान पुलिस को दिया था. चंपा विश्वास का कहना था कि बयान को बदलकर कोर्ट में पेश किया गया. आपको बता दें कि बीवी विश्वास का परिवार इस घटना के बाद दिल्ली शिफ्ट हो गया था लेकिन उनके मन में ऐसा डर बैठा हुआ था कि उनको अपना ठिकाना तकरीबन 20 बार बदलना पड़ा.

10 साल पहले आरोपित को कोर्ट ने झूठे गवाहों को बुनियाद बनाकर बरी कर दिया :

हालाकी 10 साल पहले यानी 2010 में बिहार के पटना हाईकोर्ट ने हेमलता यादव और मृत्युंजय यादव को चंपा विश्वास के रेप कांड से जुड़े मामले में बड़ी करते हुए, ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. आपको बता दें कि आरोपित का कहना था कि उसका राजद और भाजपा की लड़ाई में इस्तेमाल किया गया है और बकरा बनाया गया है. साथ ही साथ उसने यह भी कहा कि सुशील मोदी ने जानबूझकर इस मुद्दे को बड़ा बनाया जिससे उसकी जिंदगी बर्बाद हो गई वरना वह दिल्ली के हिंदू कॉलेज में पढ़ता था और सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था. 

अब आप खुद तय करिए की लालू यादव की सरकार का जंगलराज कैसा रहा होगा, इतनी शर्मनाक घटना के बाद भी आरोपित बड़ी हो जाता है और पीड़िता को न्याय नहीं मिलता है. आज फिर से 2020 में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और एक बार फिर से राजद ने अपने अधिकतम क्षेत्रों में गुंडे, मवाली और बाहुबली को ही उम्मीदवार बनाया है. अगर आप चाहते हैं कि वो जंगलराज फिर से दोबारा बिहार में ना आए तो आप किसी और पार्टी को वोट कर दें लेकिन राजद को भूलकर भी वोट ना करें क्योंकि आपका एक वोट महत्व रखता है. अपने वोट का इस्तेमाल सही उम्मीदवार चुनने के लिए करें ना कि किसी क्रिमिनल को.

बिहार चुनाव में इस बार स्वर्ण उम्मीदवारों का दबदबा, राजद ने भी छोड़ा मुस्लिम-यादव कांसेप्ट

October 16, 2020

आपको बता दें कि बिहार में सभी पार्टियों के उम्मीदवारों ने अपने अपने पर्चे भर दिए हैं और इस बीच इस बार की राजनीति में ऐसी अनुभूति होती है जैसे मानो तीन दशक बाद बिहार की राजनीति में स्वर्ण राजनीति लौटती दिख रही है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि इस बार के बिहार चुनाव में टिकट बंटवारे में करीब करीब सभी दलों ने सवर्णों को तवज्जो दी है. जैसा कि हम पहले देखते रहे हैं कि राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड हमेशा से दलित और पिछड़ों की राजनीति करती आई है, किंतु इस बार सवर्णों का इन पार्टियों ने भी खासा ख्याल रखा है. वहीं अगर हम भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो अपने काफी उम्मीदवारों में बीजेपी ने भी सवर्णों को ही तवज्जो दी है.


सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात तो यह है की दलित और पिछड़ों की राजनीति करने वाले रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा भी इस बार की बिहार राजनीति में सवर्णों को टिकट देने में कोई कमी नहीं की है. आपको बता दें कि जेडीयू में सोशल इंजीनियरिंग के तहत अपने जनाधार वाली जातियों के अलावा महिलाओं के साथ-साथ सवर्णों को भी उम्मीदवार बनाया है.

बीजेपी ने 60% से ज्यादा स्वर्ण उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं :

अगर हम इस बार के बिहार चुनाव में टिकट वितरण की बात करें तो भाजपा ने अपने उतारे गए प्रत्याशियों में से 60 फ़ीसदी स्वर्ण समाज से अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. वहीं अगर कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस का भी आंकड़ा इसी के आसपास भटकता नजर आता है. लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि जनता दल यूनाइटेड ने इस बार पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले सवर्णों को ज्यादा मौका दिया है. वहीं राजद ने भी दलित और पिछड़ों की राजनीति छोड़ते हुए अपनी रणनीति में बदलाव किया है और इस बार 10 फ़ीसदी से ज्यादा स्वर्ण को टिकट दिया है. आपको बता दें कि राष्ट्रीय जनता दल ने स्वर्ण वोटरों को लुभाने के लिए अपने ही पार्टी के कद्दावर नेताओं के रिश्तेदारों को मैदान में उतारा है.

वहीं अगर स्वर्गीय राम विलास पासवान की पार्टी लोजपा की बात की जाए जो कि हमेशा से दलित राजनीति करती रही है उसने 35 फ़ीसदी से ज्यादा स्वर्ण को टिकट दिया है.

हिंदुत्व के एजेंडे के कारण सभी पार्टियां स्वर्ण वोटरों को साधने में लगी है :

अगर आपको मालूम हो तो 2013 लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व के एजेंडे को वाह आगे बढ़ाते हुए हर विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति तय की और इस रणनीति में भाजपा को अच्छे नतीजे भी मिले. इसी एजेंडे को देखते हुए कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल ने भी हिंदुत्व के एजेंडे पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर कर दिया है. शायद यही वजह है कि जो राजद पहले के बिहार विधानसभा चुनाव में माई समीकरण वाले कांसेप्ट पर चुनाव लड़ती थी, इसबार वो समीकरण  विधानसभा चुनाव में नहीं दिख रहा. आपको बता दें कि राजद पहले के विधानसभा चुनाव में माई कॉन्सेप्ट के आधार पर टिकट वितरण करती थी, माई कांसेप्ट यानी मुस्लिम यादव समीकरण के आधार पर प्रत्याशियों को टिकट दिए जाते थे और इन्हीं वोटरों को हमेशा से राजद लुभाने की कोशिश करती थी.

सबसे बड़ी बात यह रही कि इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पहले चरण में मात्र एक मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारा है और चौंकाने वाली बात यह है कि इसबार मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या पिछली बार की के विधानसभा चुनाव से काफी कम है.

क्या कहता है इतिहास का समीकरण बिहार की राजनीति में स्वर्ण वोटरों को लेकर :

अगर इतिहास के पन्नों में झांक कर देखे तो 1989 - 1990 के बाद बिहार में स्वर्ण राजनीति का घोर विरोध हुआ. आपको बता दें कि 1990 के दशक में डॉ जगन्नाथ मिश्र चुनाव हारे और लालू प्रसाद यादव की सत्ता में इंट्री हुई. जिसके बाद बिहार की राजनीति ने ऐसा करवट लिया की जनता दल यूनाइटेड ने खुले मंचों से सवर्णों को कोसना शुरू कर दिया कि वह हमेशा से ओबीसी और दलितों का शोषण करते रहे है. उस वक्त के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव ने माई कॉन्सेप्ट को मजबूती दी और साथ ही साथ ओबीसी दलित और एससी एसटी वोटरों को जातिवाद की राजनीति करके खूब लुभाया. लालू प्रसाद यादव ने उस दौर में बिहार की राजनीति में जातिवाद का ऐसा जहर घोला की हर तरफ जातिवाद कि लड़ाई शुरू हो गई और बिहार में गुंडाराज का ऐसा माहौल बना की जातियों के नाम पर हर तरफ खून खराबे, किडनैपिंग और फिरौती वसूली जैसे कार्य चरम पर पहुंच गए.

1992 में ब्राह्मणों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा और भाजपाई हो गए.इसी समय दलित राजनीति को रामविलास पासवान ने हवा दी, ओबीसी राजनीति पर लालू और नीतीश कुमार बंटे. 1994 में समता पार्टी बनी और नीतीश की समता पार्टी ने भी सवर्ण विरोधी राजनीति को हवा दी.

स्वर्ण वोटरों का एक बड़ा तबका बीजेपी और जेडीयू गठबंधन का समर्थक है :

1995 आते-आते भारतीय जनता पार्टी ने स्वर्ण राजनीति को मजबूती देने की कोशिश की जिसमें काफी तेजी भी देखने को मिली जब राम मंदिर विवाद शुरू हुआ. उस वक्त बिहार की राजनीति में राजपूत और भूमिहार नेता खुलकर सामने आने लगे, फिर भी बिहार से जातिवाद का जहर खत्म नहीं हुआ. 2003 में जनता दल यूनाइटेड के गठन के साथ नीतीश कुमार ने अपने पुराने रुख को बदला और बीजेपी के साथ मिलकर स्वर्ण वोटरों पर निशाना साधना शुरू किया, जिसमें 2005 के बाद जेडीयू और बीजेपी के गठबंधन ने स्वर्ण वोटरों को लगभग अपने पाले में बना लिया. आज फिर से एक बार 2020 विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियों को स्वर्ण मतदाताओं की चिंता सताने लगी है कि आखिर वह किस के पाले में अपना वोट देंगे.

अगर देखा जाए तो बीते कुछ महीनों में सुशांत सिंह राजपूत हत्या की हत्या ने भारत में खूब सुर्खियां बटोरी और इसकी एक बड़ी झांकी बिहार विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल रही है. माना तो ऐसा भी जा रहा है कि सुशांत सिंह राजपूत के कारण इस बार स्वर्ण वोटरों को राजनीतिक पार्टियां लुभाने की कोशिश कर रही हैं.


आखिर क्यूं चिराग पासवान जदयू के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे हैं, कहीं प्रशांत किशोर तो कारण नहीं

October 12, 2020

बिहार की राजनीति इसको समझना और इसको भेदना उतना ही मुश्किल है जितना महाभारत में अभिमन्यु द्वारा चक्रव्यू को तोड़ना. अभी के दौड़ में जहां सभी पार्टियां चुनावी तैयारियों में जुंटी हुई है, वहीं यह अटकलें तेज हो गई हैं कि, प्रशांत किशोर कहां है ?.. और इस चुनाव में इनकी क्या भूमिका रहेगी ?.. आपको बता दें कि अटकलों के हिसाब से चिराग पासवान प्रशांत किशोर के कहने पर ही जनता दल यूनाइटेड के विरुद्ध चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. जहां एक तरफ इस फैसले से चिराग पासवान अपने जदयू से अपमानजनक निष्कासन का बदला ले सकेगी तो वहीं भविष्य की रणनीति से बीजेपी को फायदा भी पहुंचाएगी.

Image Credit : Google
आप सबको याद हो तो 2013 में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड जीत दिलवाने में प्रशांत किशोर का एक बड़ा योगदान रहा था, वहीं अगर बिहार के 2015 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो उस चुनाव में भी प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार और आरजेडी के महागठबंधन को शानदार जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. किंतु 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की मौजूदगी उस कदर दर्ज नहीं हो पा रही है जैसे पहले के चुनावों में होती रही है. माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर 2020 बिहार विधानसभा  के चुनाव में पर्दे के पीछे से गेम चेंजर हो सकते हैं. खबर तो यह भी आ रही है कि पिछले 2 वर्षों से चिराग पासवान प्रशांत किशोर के संपर्क में है. आपको बता दें कि चिराग पासवान और प्रशांत किशोर साल 2018 में 11 नवंबर को रामविलास पासवान के पटना आवास पर मिले भी थे और माना जा रहा है कि इस मुलाकात के बाद से दोनों लगातार संपर्क में है.


भगवान सिंह कुशवाहा का जदयू से अलग होने और एलजेपी के साथ होने के पीछे क्या कारण है :

आपको बता दें कि हाल ही में जनता दल यूनाइटेड के नेता और प्रशांत किशोर के करीबी भगवान श्री कुशवाहा ने जनता दल यूनाइटेड का दामन छोड़ एलजेपी का दामन थामा है और इसके पीछे वजह प्रशांत किशोर को बताया जा रहा है. आपको बता दें कि 2019 की शुरुआत में जब प्रशांत किशोर जनता दल यूनाइटेड के उपाध्यक्ष हुआ करते थे तभी भगवान सिंह कुशवाहा को उनके काफी समर्थकों के साथ प्रशांत किशोर ने ही जनता दल यूनाइटेड ज्वाइन करवाई थी और उनको यह वायदा किया गया था कि, उनको काराकाट लोकसभा सीट से टिकट दी जाएगी.

किंतु टिकट बंटवारे के वक्त जेडीयू महासचिव आरसीपी सिंह के सामने प्रशांत किशोर की चल नहीं पाई और भगवान सिंह कुशवाहा को टिकट नहीं मिल पाया. जिसके बाद से कुशवाहा नाराज चल रहे थे और प्रशांत किशोर के पार्टी छोड़ने के बाद कुशवाहा पार्टी में पूरी तरह से अलग-थलग हो गए थे. ऐसे में कुशवाहा का जनता दल यूनाइटेड छोर एलजेपी का दामन थामना प्रशांत किशोर और चिराग पासवान के सांठगांठ की ओर इशारा करता है. आपको बता दें कि भगवान सिंह कुशवाहा को जगदीशपुर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है.

प्रशांत किशोर को क्यों जनता दल यूनाइटेड से बाहर का रास्ता दिखाया गया था :

आप सबको याद हो तो सितंबर 2018 में प्रशांत किशोर ने सक्रिय राजनीति में अपना पांव पसारते हुए जनता दल यूनाइटेड का दामन थामा था. जिसके बाद लोगों को हैरानी भी हुई थी और हैरानी होना लाजमी भी था, क्योंकि प्रशांत किशोर इससे पहले अलग-अलग पार्टियों के लिए पर्दे के पीछे से गेम चेंजर की भूमिका निभाया करते थे. प्रशांत किशोर का सक्रिय राजनीति में कदम रखना उनकी खुद की महत्वाकांक्षा बताई गई, जिसमें प्रशांत किशोर को यह उम्मीद थी कि बिहार में नीतीश कुमार के बाद जनता दल यूनाइटेड में वह नंबर दो के नेता होंगे और इस लिहाज से भविष्य में वह बिहार के सीएम बन जाएंगे. प्रशांत किशोर को भविष्य के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने के लिए उनकी कंपनी आईपैक ने पूरी तैयारी भी कर ली थी.

किंतु कुछ समय बाद प्रशांत किशोर का यह सपना चकनाचूर हो गया और इसके पीछे कारण बने आरसीपी सिंह और लल्लन सींह. आपको बता दें कि जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेताओं में से एक आरसीपी सिंह  हमेशा से खुद को नितीश कुमार का करीबी और खुद को नंबर दो का नेता मानते रहे है. वहीं ललन सिंह भी यही सोचते हैं कि नीतीश कुमार के बाद पार्टी में उनकी हैसियत नंबर दो की है. ऐसे में इन दो बड़े नेताओं के बीच पार्टी में प्रशांत किशोर एक कंकड़ की भांति खटकते रहे. साथ ही साथ प्रशांत किशोर के रिश्ते इन दोनों नेताओं से कभी अच्छे भी नहीं हो पाए, जिसका खामियाजा अंततः प्रशांत किशोर को निष्कासन के रूप में भुगतना पड़ा.

प्रशांत किशोर का T10 मिशन और चिराग पासवान का बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट मिशन एक सा लगता है क्यूं ?

निष्कासन के बाद प्रशांत किशोर ने अपना भविष्य कहीं और तलाशना शुरू कर दिया और शायद अभी के समीकरणों को देखकर ऐसा लगता है, जैसे प्रशांत किशोर अब चिराग पासवान के जरिए सक्रिय राजनीति में आगे बढ़ना चाहते हैं. अभी चिराग पासवान जिस तरीके से पिछले कुछ महीनों में बिहार में राजनीति कर रहे हैं, वो राजनीति का पैटर्न प्रशांत किशोर का ही है और शायद यह रणनीति प्रशांत किशोर के दिमाग से ही बुनी जा रही है. प्रशांत किशोर की राजनीति को समझने के लिए आपको सबसे पहले प्रशांत किशोर के T-10 मिशन को समझना होगा. टीम प्रशांत किशोर ने T-10 मिशन कैंपेन की योजना बनाई थी, जिसका मकसद बिहार को टॉप राज्य में लाना और भविष्य में प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री बनाना था. हालाकी जेडीयू से निष्कासन के बाद इस कैंपेन को टीम प्रशांत पूरा नहीं कर पाई. प्रशांत किशोर जब जनवरी के महीने में जनता दल यूनाइटेड से निकाले गए उसके ठीक बाद फरवरी में ही चिराग पासवान ने बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट कैंपेन की शुरुआत की और सबसे बड़ी बात यह है कि इस कैंपेन का ब्लूप्रिंट प्रशांत किशोर के की T-10 मिशन से बिल्कुल मिलता जुलता है. यानी बिहार को नंबर एक राज्य बनाने की बात लेकर जन जन तक पहुंचना.

प्रशांत किशोर को सोशल मीडिया एक्सपोर्ट मना जाता है, क्योंकि प्रशांत किशोर पार्टियों के प्रचार के लिए सोशल मीडिया का पूरी तरह से इस्तेमाल करते हैं और वह हर तिकड़म लगाते हैं जिससे पार्टी की आवाज जन जन तक जा सके. वही पिछले कुछ महीने से यह देखा जा रहा है कि चिराग पासवान भी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हो गए हैं. एक समय था जब बिहार के पिछड़ेपन की बात सिर्फ प्रशांत किशोर किया करते थे और आज उसी काम को चिराग पासवान सोशल मीडिया या फिर प्रिंट मीडिया के जरिए आगे बढ़ा रहे हैं और नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं.

प्रशांत किशोर अपने पेज 'बात बिहार की' पर 60 से 65 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं नीतीश के विरोध के लिए :

प्रशांत किशोर के निष्कासन का कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव भी बताया जाता है. आपको बता दें कि प्रशांत किशोर कि कंपनी दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी की मदद कर रही थी, वहीं प्रशांत किशोर की खुद की पार्टी जदयू जिसके वह उपाध्यक्ष थे वो भी दिल्ली में चुनाव लड़ रही थी. यही बात जनता दल यूनाइटेड के कई नेताओं को खटक रही थी कि प्रशांत किशोर खुद की पार्टी का प्रचार करने के बजाय दिल्ली चुनाव में किसी और पार्टी का प्रचार क्यों कर रहे हैं. साथ ही साथ सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर प्रशांत किशोर का नीतीश कुमार से मनमुटाव प्रशांत किशोर के निष्कासन का कारण बना.अंततः 

उन्हें 29 जनवरी 2020 को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इसके बाद प्रशांत किशोर ने वैकल्पिक नेतृत्‍व देने की बात कह कर बाकायदा ‘बात बिहार की’ नाम से कैंपेन का ऐलान किया.अगर हम फेसबुक पेज 'बात बिहार की' के बारे में बात करें तो यह पेज लगातार नितीश कुमार का विरोध प्रचार कर रही है. वहीं अगर हम एक मीडिया रिपोर्ट की माने तो इस पेज के कंटेंट को लोगों तक पहुंचाने के लिए बीते 8 महीने में प्रशांत किशोर ने 60 से 65 लाख रुपए खर्च किए हैं. वहीं अगर हम जमीनी स्तर की बात करें तो इस कैंपेन में कुछ खास हलचल नहीं दिखाई देती है. बहरहाल जो भी हो आने वाले दिनों में बीजेपी नीतीश कुमार का वैकल्पिक चेहरा तलाश कर रही है और शायद यही कारण है कि चिराग पासवान बीजेपी के विरुद्ध चुनाव लड़ के भी उनके साथ खड़े हैं और इसमें चिराग पासवान का बखूबी साथ दे रहे हैं प्रशांत किशोर.

 

हम राजनीती एवं इतिहास का एक अभूतपूर्व मिश्रण हैं.हम अपने धर्म की ऐतिहासिक तर्क-वितर्क की परंपरा को परिपुष्ट रखना चाहते हैं.हम विविध क्षेत्रों,व्यवसायों,सोंच और विचारों से हो सकते हैं,किन्तु अपनी संस्कृति की रक्षा,प्रवर्तन एवं कृतार्थ हेतु हमारा लगन और उत्साह हमें एकजुट बनाये रखता है.हम एक ऐसे प्रपंच में कदम रख रहें हैं जहां हमारे धर्म,शास्त्रों नियमों को कुरूपता और विकृति के साथ निवेदित किया जा रहा है.हम अपने धार्मिक ऐतिहासिक यथार्थता को समाज के सामने स्पष्ट करना चाहते है,जहाँ पुराने नियम प्रसंगगिक नहीं रहे.हम आपके विचारों के प्रतिबिंब हैं,हम आपकी अभिव्यक्ति के स्वर हैं और हम आपको निमंत्रित करते हैं,आपका अपना मंच 'IndicWing' पर,सारे संसार तक अपना निनाद पहुंचायें!

HTML tutorialHTML tutorialHTML tutorialHTML tutorial


VineThemes
| Copyright © IndicWing | Sponsored by Bharatidea | Designed & Distibuted by Dmitri Tech |
VineThemes