बिहार की राजनीति इसको समझना और इसको भेदना उतना ही मुश्किल है जितना महाभारत में अभिमन्यु द्वारा चक्रव्यू को तोड़ना. अभी के दौड़ में जहां सभी पार्टियां चुनावी तैयारियों में जुंटी हुई है, वहीं यह अटकलें तेज हो गई हैं कि, प्रशांत किशोर कहां है ?.. और इस चुनाव में इनकी क्या भूमिका रहेगी ?.. आपको बता दें कि अटकलों के हिसाब से चिराग पासवान प्रशांत किशोर के कहने पर ही जनता दल यूनाइटेड के विरुद्ध चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. जहां एक तरफ इस फैसले से चिराग पासवान अपने जदयू से अपमानजनक निष्कासन का बदला ले सकेगी तो वहीं भविष्य की रणनीति से बीजेपी को फायदा भी पहुंचाएगी.
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भगवान सिंह कुशवाहा का जदयू से अलग होने और एलजेपी के साथ होने के पीछे क्या कारण है :
आपको बता दें कि हाल ही में जनता दल यूनाइटेड के नेता और प्रशांत किशोर के करीबी भगवान श्री कुशवाहा ने जनता दल यूनाइटेड का दामन छोड़ एलजेपी का दामन थामा है और इसके पीछे वजह प्रशांत किशोर को बताया जा रहा है. आपको बता दें कि 2019 की शुरुआत में जब प्रशांत किशोर जनता दल यूनाइटेड के उपाध्यक्ष हुआ करते थे तभी भगवान सिंह कुशवाहा को उनके काफी समर्थकों के साथ प्रशांत किशोर ने ही जनता दल यूनाइटेड ज्वाइन करवाई थी और उनको यह वायदा किया गया था कि, उनको काराकाट लोकसभा सीट से टिकट दी जाएगी.
किंतु टिकट बंटवारे के वक्त जेडीयू महासचिव आरसीपी सिंह के सामने प्रशांत किशोर की चल नहीं पाई और भगवान सिंह कुशवाहा को टिकट नहीं मिल पाया. जिसके बाद से कुशवाहा नाराज चल रहे थे और प्रशांत किशोर के पार्टी छोड़ने के बाद कुशवाहा पार्टी में पूरी तरह से अलग-थलग हो गए थे. ऐसे में कुशवाहा का जनता दल यूनाइटेड छोर एलजेपी का दामन थामना प्रशांत किशोर और चिराग पासवान के सांठगांठ की ओर इशारा करता है. आपको बता दें कि भगवान सिंह कुशवाहा को जगदीशपुर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है.
प्रशांत किशोर को क्यों जनता दल यूनाइटेड से बाहर का रास्ता दिखाया गया था :
आप सबको याद हो तो सितंबर 2018 में प्रशांत किशोर ने सक्रिय राजनीति में अपना पांव पसारते हुए जनता दल यूनाइटेड का दामन थामा था. जिसके बाद लोगों को हैरानी भी हुई थी और हैरानी होना लाजमी भी था, क्योंकि प्रशांत किशोर इससे पहले अलग-अलग पार्टियों के लिए पर्दे के पीछे से गेम चेंजर की भूमिका निभाया करते थे. प्रशांत किशोर का सक्रिय राजनीति में कदम रखना उनकी खुद की महत्वाकांक्षा बताई गई, जिसमें प्रशांत किशोर को यह उम्मीद थी कि बिहार में नीतीश कुमार के बाद जनता दल यूनाइटेड में वह नंबर दो के नेता होंगे और इस लिहाज से भविष्य में वह बिहार के सीएम बन जाएंगे. प्रशांत किशोर को भविष्य के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने के लिए उनकी कंपनी आईपैक ने पूरी तैयारी भी कर ली थी.
किंतु कुछ समय बाद प्रशांत किशोर का यह सपना चकनाचूर हो गया और इसके पीछे कारण बने आरसीपी सिंह और लल्लन सींह. आपको बता दें कि जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेताओं में से एक आरसीपी सिंह हमेशा से खुद को नितीश कुमार का करीबी और खुद को नंबर दो का नेता मानते रहे है. वहीं ललन सिंह भी यही सोचते हैं कि नीतीश कुमार के बाद पार्टी में उनकी हैसियत नंबर दो की है. ऐसे में इन दो बड़े नेताओं के बीच पार्टी में प्रशांत किशोर एक कंकड़ की भांति खटकते रहे. साथ ही साथ प्रशांत किशोर के रिश्ते इन दोनों नेताओं से कभी अच्छे भी नहीं हो पाए, जिसका खामियाजा अंततः प्रशांत किशोर को निष्कासन के रूप में भुगतना पड़ा.
प्रशांत किशोर का T10 मिशन और चिराग पासवान का बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट मिशन एक सा लगता है क्यूं ?
निष्कासन के बाद प्रशांत किशोर ने अपना भविष्य कहीं और तलाशना शुरू कर दिया और शायद अभी के समीकरणों को देखकर ऐसा लगता है, जैसे प्रशांत किशोर अब चिराग पासवान के जरिए सक्रिय राजनीति में आगे बढ़ना चाहते हैं. अभी चिराग पासवान जिस तरीके से पिछले कुछ महीनों में बिहार में राजनीति कर रहे हैं, वो राजनीति का पैटर्न प्रशांत किशोर का ही है और शायद यह रणनीति प्रशांत किशोर के दिमाग से ही बुनी जा रही है. प्रशांत किशोर की राजनीति को समझने के लिए आपको सबसे पहले प्रशांत किशोर के T-10 मिशन को समझना होगा. टीम प्रशांत किशोर ने T-10 मिशन कैंपेन की योजना बनाई थी, जिसका मकसद बिहार को टॉप राज्य में लाना और भविष्य में प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री बनाना था. हालाकी जेडीयू से निष्कासन के बाद इस कैंपेन को टीम प्रशांत पूरा नहीं कर पाई. प्रशांत किशोर जब जनवरी के महीने में जनता दल यूनाइटेड से निकाले गए उसके ठीक बाद फरवरी में ही चिराग पासवान ने बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट कैंपेन की शुरुआत की और सबसे बड़ी बात यह है कि इस कैंपेन का ब्लूप्रिंट प्रशांत किशोर के की T-10 मिशन से बिल्कुल मिलता जुलता है. यानी बिहार को नंबर एक राज्य बनाने की बात लेकर जन जन तक पहुंचना.
प्रशांत किशोर को सोशल मीडिया एक्सपोर्ट मना जाता है, क्योंकि प्रशांत किशोर पार्टियों के प्रचार के लिए सोशल मीडिया का पूरी तरह से इस्तेमाल करते हैं और वह हर तिकड़म लगाते हैं जिससे पार्टी की आवाज जन जन तक जा सके. वही पिछले कुछ महीने से यह देखा जा रहा है कि चिराग पासवान भी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हो गए हैं. एक समय था जब बिहार के पिछड़ेपन की बात सिर्फ प्रशांत किशोर किया करते थे और आज उसी काम को चिराग पासवान सोशल मीडिया या फिर प्रिंट मीडिया के जरिए आगे बढ़ा रहे हैं और नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं.
प्रशांत किशोर अपने पेज 'बात बिहार की' पर 60 से 65 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं नीतीश के विरोध के लिए :
प्रशांत किशोर के निष्कासन का कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव भी बताया जाता है. आपको बता दें कि प्रशांत किशोर कि कंपनी दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी की मदद कर रही थी, वहीं प्रशांत किशोर की खुद की पार्टी जदयू जिसके वह उपाध्यक्ष थे वो भी दिल्ली में चुनाव लड़ रही थी. यही बात जनता दल यूनाइटेड के कई नेताओं को खटक रही थी कि प्रशांत किशोर खुद की पार्टी का प्रचार करने के बजाय दिल्ली चुनाव में किसी और पार्टी का प्रचार क्यों कर रहे हैं. साथ ही साथ सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर प्रशांत किशोर का नीतीश कुमार से मनमुटाव प्रशांत किशोर के निष्कासन का कारण बना.अंततः
उन्हें 29 जनवरी 2020 को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इसके बाद प्रशांत किशोर ने वैकल्पिक नेतृत्व देने की बात कह कर बाकायदा ‘बात बिहार की’ नाम से कैंपेन का ऐलान किया.अगर हम फेसबुक पेज 'बात बिहार की' के बारे में बात करें तो यह पेज लगातार नितीश कुमार का विरोध प्रचार कर रही है. वहीं अगर हम एक मीडिया रिपोर्ट की माने तो इस पेज के कंटेंट को लोगों तक पहुंचाने के लिए बीते 8 महीने में प्रशांत किशोर ने 60 से 65 लाख रुपए खर्च किए हैं. वहीं अगर हम जमीनी स्तर की बात करें तो इस कैंपेन में कुछ खास हलचल नहीं दिखाई देती है. बहरहाल जो भी हो आने वाले दिनों में बीजेपी नीतीश कुमार का वैकल्पिक चेहरा तलाश कर रही है और शायद यही कारण है कि चिराग पासवान बीजेपी के विरुद्ध चुनाव लड़ के भी उनके साथ खड़े हैं और इसमें चिराग पासवान का बखूबी साथ दे रहे हैं प्रशांत किशोर.